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________________ २८६ भ्रम विध्यसनम् । प्रते. ति० त्रिण वार. प्रा. जीमणा पासा थी. प० प्रदक्षिणा करे. क० हाथ जोड़ी ने यावतू. ए० इम कहे. न नमस्कार थावो ते तुझ ने. हे रत्न कुक्षि नी धरणहारी. ए० इण प्रकार. ज० जिम. दि० दिशाकुमारी कह्या तिम कहे छै. ध० तूं धनय छै. पु० तूं पुण्यवन्त छै. क० तूं कृतार्थ छै. अ. अहो. दे० देवानुप्रिये ! स० हूं शक्र नामक देवेन्द्र. दे० देवता नो राजा. भ० भगवान्. ति तीर्थ कर नों. ज. जन्म महोत्सव. क० करस्यूं. अथ इहां तीर्थङ्कर नी माता ने इन्द्र प्रदक्षिणा देई ने नमस्कार कियो । ते इन्द्र तो सम्यग्दृष्टि अर्ने तीर्थङ्कर नी माता सम्यग्दृष्टि हुवे, तथा प्रथम गुणठाणे पिण भगवान री माना हुवे तो तेहनें पिण नमस्कार करे, ते पोता नों जीत आचार लौकिक रीति जाणी साचवे पिण धर्म न जाणे। तिम अम्बस ना चेलां पिण संसार नों गुरु जाणी नमस्कार कियो पिण धर्म हेते नहीं। तथा वली अनेक श्रावक ना मङ्गलीक रे घर ना देव पूजे। “नाग हेउवा भूत हेउवा जक्ख हेउवा" कह्या छै। अभयकुमार धारणी रो दोहिलो पूर्वा पूर्व भव ना मित्र देवता आराध्यो। भरतजी १३ तेला किया, देवता ने नमस्कार करी बाण मूक्यो त्यांने बश किया। कृष्ण देवता ने आराध्यो छै। पछे गज सुकुमाल को जन्म थयो। इत्यादिक संसार ने हेते सम्यग्दृष्टि श्रावक अनेक सावध कार्य करे। पिण धर्म न जाणे । तिम अम्बम ना चेलां पिण विनय नमस्कार कियो ते संसार नों गुरु जाणी ने, पिण धर्म हेते नहीं। गृहस्थ ने नमस्कार करण री भगवान् री आज्ञा नहीं ते माटे श्रावक ने ममस्कार कियां धर्म नहीं। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो । इति ८ बोल सम्पूर्ण। तथा आवश्यक सूत्र में नवकार ना ५ पद कह्या-पिण "णमो सावयाणं" इम छठो पद कहो नहीं। तथा चन्द्र प्रज्ञप्ति सूत्र में एहवो पाठ कह्यो छै। ते लिखिये छै। - नमिऊरण असुर सुर गरुल-भुयंगपरिवंदिए गय किलेसे अरिहं सिद्धायरिय--उवज्झाय सव्वसाहय । .. (चन्द्र प्रज्ञाप्ति गा. ..
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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