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भ्रम विध्वंसनम्।
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अथ इहां कलो-साधू अन्यतीर्थी तथा गृहस्थ पासे अर्श छेदावे. तथा कोई अनेरा साधू जी शर्मा उस्ता' असोलोमालिक प्रायश्चित आये। अर्श छेदञ्या गुण्य का किरहोगे तो ए अ गवाला में अनुमोदे तो इंड क्यू कयो। पुणेरी कार को विश्व छै। जिरवा करणी अमोघां तो दंड आवे नहीं। दंड तो पापी कारणी अनुमोबाथी आवे । " पुण्य री करणी आज्ञा माहिज छैन। भने अर्शचो ते कार्य आज्ञा बाहिर छ । पुण्य री करणी तो निरवध छै। ते आशा माहिली लिवर करणी अनुमोधों तो साधू ने दंड भावे नहीं। दंड तो सावध भाशा बाहिर ही पायरी फरणी अनुमोधा रो छै। जे कोई साधू री अर्श छेदे तेहनी अनुमोदना कियाँ पाप लागे तो छेण वाला ने धर्म किम हुवे। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो।
इति ११ बोल सम्पूर्ण।
तथा पली आचारांगे अ० १३ एहवो पाठ कह्यो छै ते लिखिये छ। . सिया से परो कायं सिवणं अणयरे ण सत्थ जाएणं आछिंदेज वा विच्छिदेजा णो तं सातिए णो तं नियमे।
(आचारांग अ० १३ श्रु०२)
सि० कदाचित से० ते. साधु नों का० शरीर में विषे. व० व्रण गूमड़ो उपनों जाणी. भनेरे गृहस्थ स० शस्त्रे करी आ० थोड़ो छेदे वि० घणो छेदे. नो० तो ते साधु बांछे नहीं. हो. करावे नहीं.
. अथ इहां कह्यो जे साधु रे शरीरे व्रण ते गूमड़ो फुणसी आदिक तेहनें कोई पर अनेरो गृहस्थ शस्त्रे करी छेदे तो तेहनें मन करी अनुमोदे नहीं। अने बचन फरी तथा काया ई करी करावे नहीं। जे कार्य में साधु मन करी अनुमोदना ईन करे ते कार्य करण वाला में धर्म किम हुवे। एणे अध्ययन घणा बोल कया छै। जे