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( छ ) ..३० बोल पृष्ठ ६८ से ६६ तक । धायक ने जिमायाँ ऊपरे महावीर पार्श्वनाथ ना साधु नो न्याय मिले नहीं (उत्त०१० २३ गा० १७)
३१ बोल पृष्ठ ६६ से १०० तक । असोचा केवली मी.रीति (भग० श० ६ उ० ३१)
३२ बोल पृष्ठ १०० से १०२ तक। अभिग्रहधारी परिहार विशुद्ध चारित्रिया में अनेरा साधु नी रीति (बृह. रकल्प उ० ४ बो० २६)
३३ बोल पृष्ठ १०२ से १०२ तक । साधु गृहस्थ ने देवो संसार मो हेतु जाण छोड्यो (सूय० श्रु० १ ०६ गा० २३)
३४ बोल पष्ठ १०२ से १०४ तक। गृहस्थ ने दान देणा अनुमोद्यां चौमासी प्रायश्चित्त (निशी० उ० १५ बो०७८-७६)
३५ बोल पृष्ठ १०४ से १०६ तक । सन्थारा में पिण आनन्द ने गृहस्थ कह्यो छै ( उ० द० अ० १)
३६ बोल पृष्ठ १०६ से १०८ तक। गृहस्थ नी व्यावच कियां अनाचार ( दशा श्रु० अ०६)
३७ बोल पृष्ठ १०८ से १०८ तक । पड़िमाधारी रे प्रेमबन्धन बेट्यो न थी (दशा श्रु० अ०६)
३८ बोल पष्ठ १०६ से १११ तक । अम्बर सन्यासी नो कल्प ( उवाई प्र० १४ ) अनेरा सन्यासीनो कल्प (उवाई प्र. १२)
___ ३६ बोल पृष्ठ ११२ से ११३ तक । वर्णनाग नाग नतुमाना अभिग्रह (भ. श७ ७ उ०६)