SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 313
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भ्रम विध्वंसनम् । می و سعی م روی یه که می بی بی مه ، یه می دهی به یه به مه به سه بی بی می که به في يه مه يه مه مه ت بي بي अथ इहां तीर्थङ्कर गोत्र ना २० वोल कह्या। तिहाँ सत्तरह में घोल में गुरु ने चित्त में समाधि उपजावे, तो तीर्थङ्कर गोत्र बंधे एहवू कह्यो छ। तेहनी टीका में पिण इम कह्यो । ते टीका लिखिये छ। "समाधौष गुर्वादीनां कार्य करण द्वारेण चित्त स्वास्थ्योत्पादने सति नितितवान्' इहां टीकामें पिण गुर्वादिक साधु इज कह्या। पिण गृहस्थ न कह्या । गृहस्थ नी व्यावच करे ने तो अठ्ठावीसमो अगाचार छै। पिण आशा में नहीं। अने वीसां घोलां तीर्थङ्कर गोत्र बंधे। ते वीसू ही वोल निरवद्य छै। आशा माहि छै। ए तो वीस वोल महावल अगगार सेव्या ते ठिकाणे कहा छै। ते महावल अणगार तो साधु हुन्ता। ते गृहस्थ नी व्यावच किम करस्ये। गृहस्थ शरीर नी सांता वांछ. ते सावध छै। तेह थी तो तीर्थर गोत्र बंधे नहीं। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो। इति ४ बोल सम्पूर्ण। तथा सावध साता दोधां साता कहे, तिण ने तो भगवान् निषेध्यो , ते सूत्र पाठ लिखिये छ। इह मेगेउ भासंसि सायं सातेण विजइ । जेतत्थ आयरिय मग्गं परमं च समाहिय ॥ ६ ॥ मा एवं अव मन्नत्ता 'अप्पेण लुप्पहा बहु । एअस्स अमोक्खाए अय हरिव झरह ॥७॥ (सूयगडाङ्ग श्रु० १ अ० ३ उ० ४)
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy