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भ्रम विध्वंसनम् ।
इम तीन भली लेश्या ने पिण अधिक नों पाठ भलायो ते लेखे तेजू पद्म शुक्ल लेशी पिण आरम्भी अणारम्भी बेहु हुवे । जो कृष्णादिक द्रव्य लेश्या कहे तो ए भली लेश्या पिणं द्रव्य कहिणी । तिवारे आगलो कहे- भली भाव लेश्या व से बेलां आरम्भो न हुवे । पिण भली भाव लेश्यावंत साधु नी पृच्छा आश्री श्रारंभी हुवे । ते न्याय ए ३ अली भाव लेश्यावन्त है । इम कहे तेहनें इन कहिणो । इणन्याय कृष्णादिक्क ३ माठी भाव लेश्या वर्त्त । तिण वेलां अणआरम्भ नहुने । पण माठी लेश्यावन्त साधु नी पृच्छा आश्री अणारम्भी हुवे ए तो जो कृष्णादिक ३ द्रव्य कहे तो तेजू. पद्म. शुक्ल. पिण द्रव्य कहिणी । भनें जो तेजू. पद्म शुक्ल. भाव लेश्या कडे तो कृष्णादिक पिण भाव लेश्या कहिणी । ए तो साम्प्रत साधु में ६ लेश्या कही है। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो ।
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इति ५ बोल सम्पूर्ण |
२४८.
बली जिम भगवती प्रथम शतक दूजे उद्देश्ये कह्यो -तिम पद्मवणा पद १७ उद्देश् को ते पाठ लिखिये छै ।
कराह लेसा मते गोरइया सव्वे समाहारा सम शरीरा सच्चैव पुच्छा, गोयमा ! जहा ओहिया गवरं गोरड्या वेदाए. माई मिच्छदिट्टी उववरागगाय श्रमायी सम्म - दिट्टी उवत्ररागाय भाणियत्वा । सेसं तहेव जहा ओहितायां असुर कुमारा जाव वाण मंतरा एते जहा ओहिया
वरं मणसायां किरियाहिं विसेसो जाव तत्यणं जे ते सम्म - दिट्ठी ते तिविद्दा परणत्ता तंजहा संजया. असंजया. संजयासंजया जहा ओहियाण ।
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(पवणा पद १७-१३० )