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________________ अथ लेश्याऽधिकारः। वली केई पाषंडी कहे-भगवान में माठी लेश्या पावे नहीं। भगवान् में लेश्या किहां कही छै। तत्रोत्तरम् -कवाय कुशील नियंठा में ६ लेश्या कही छै । भने भगवान में कषाय कुशील नियंठो कह्यो छै। ते पाठ लिखिये छ। ... कषाय कुसीले पुच्छा, गोयमा ! तित्थेवा होजा अतित्थेवा होजा। जइ तित्थेवा होज्जा किं तित्थयरे होजा पत्तेयबुद्धे होजा गोयमा ! तित्थगरे वा होजा पत्तेयबुद्धे वा होजा एवं नियंठेवि. एवं सिणाते। (भगवती श० २५ उ० ६ ) ० कषाय कुशील नी पृच्छा. गो० हे गौतम ! ति० तीर्थ में विषे पिण हुई. अ. भने भतीर्थ में विषे पिण हुइ'. छमस्थ अवस्था में विषे तीर्थकर पिण हुई. तीर्थकर ते तीर्थन स्थापक पिण तीर्थ माहि नहीं। ज० जो तीर्थ में विष हुई तो. कि स्यूं तीर्थकर में विषे हुई. ५० प्रत्येक बुद्ध में विषे हुइ. हे गौतम ! ति तीथंकर ने विष रिण हुइ. ५० प्रत्येक कुछ ने विषे हुई ए० एवं निम्रन्थ अने. ए० एवं नातक जाणवा. अथ अठे तीर्थङ्कर में छमस्थ पणे कषाय कुशील नियंठो कह्यो छै। तिण .सूं भगवान् में कषाय कुशील नियंठो हुन्तो। अनें कषाय कुशील नियंठे ६ लेश्या - कही छै। ते पाठ लिखिये छै।
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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