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________________ सुवर्णाधिकारः । कोधादिक आवे इज नहीं इम नथी । कदाचित् उपयोग चूकां दोष लागे । परं गुण वर्णन में अवगुण किम कहे । तिम गणधरां भगवान् रा गुण किया तिण में तो गुण वर्णव्या. जेतलो पाप न कीधो तेहिज आश्री कह्यो । परं गुण में अवगुण किम कहे। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो । इति २ बोल सम्पूर्ण । तथा कोणक राजा ना गुण कह्या ते पाठ लिखिये छै । सब्बगुल समिद्धे खत्तिए मुईए मुद्धाहि सित्ते माउपिउ सुजाए । २३३ ( उचाई सूत्र ) ० सर्व समस्त जे राजाना गुण तिणे करी समृद्ध परिपूर्ण ख० क्षत्रिय जातिवन्ध है. ० मोद सहित है. माता पितादिक परिवार मिलि राज्याभिषेक कीधो है. मा० मातापिता नों विनीत पणे करी सत्पुत्र है. ३० 1 T 1 अथ अठे कोणेक नें सर्व राजा ना गुण सहित कह्यो । मातापिता नों विनीत कह्यो । बनें निरावलिया में कह्यो । जे कोणक श्रेणिक ने बेड़ी बन्धन देई पोते राज्य बैठ्यो तो जे श्रेणक नें बेड़ी बन्धन वांध्यो ते विनीत पणो नहीं ते तो अविनीत पणो इज छै । पिण उचाई में कोणक ना गुण वर्णव्या । तिणमें जेतली विनीत पणो तेहिज वर्णव्यो । अधिनीत पणो गुण नहीं. ते सणी गुण कहिले में तेहनों कथन कियो नहीं । तिम गणधरां भगवान् रा गुण किया. त्यां गुणा में जेतला गुण हुन्ता तेहिज गुण वखाण्या परं लब्धि फोड़ी ते गुण नहीं । ते अवगुण रोकथन गुणा में किम करे । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो । , इति ३ बोल सम्पूर्ण |
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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