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________________ अथ गुणवर्णनाधिकारः। केतला एक कहे भगवान गौतम ने कह्यो हे गौतम ! मोने १२ वर्ष १३ पक्ष में किञ्चिन्मात्र पाप लाग्यो नहीं। इम कहे ते झूठ रा बोलणहार छ। ते सूत्र नों नाम लेई कहे । ते पाठ लिखिये छै । णच्चाणले महावीरे णोचिय पावगे सयम कासी, अन्नेहिं वाण कारित्था. करंतंपि णाणु जाणिस्था। (आचाराङ्ग श्र० १ ० ६ उ० ४ गा.८) ण हेच होय. उपादेय. इस्यूं जानतां थकां से० तेणे महावीरे. णो न कीधौ, .पा. पाप स० पोते अणकरता. अनेरा पाहि पाप न करावे. क. पाप करतां नं णा नहीं अनुमोदे. ___ अथ अठे तो गणधरां भगवान रा गुण कह्या । तिहां इम कह्यो। 'णञ्चा" कहितां. जाणतां थकां भगवान् पाप कियो नहीं करावे नहीं, करता ने अनुमोदे नहीं। ए तो भगवान रो आचार बतायो छै। सर्व साधां रो पिण ओहोज आचार छै। पिण इहां १२ वर्ष १३ पक्ष रो नाम चाल्यो नहीं । अनें इहां गणधरां भगवान् रा गुण वर्णन कीधा। त्यां गुणा में अवगुणा में किम कहे। गुणा में तो गुणा में इज कहे । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो। इति १ बोल सम्पूर्ण। बली उवाई में साधां रा गुण कह्या । त्यां एहयो पाठ छै ते लिग्निये छै। ,
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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