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________________ २१६ विध्वंसनम् । 1 करी, तथा आगल कह्यो । "पाण भोयण विप्परिया सियाए" कहितां स्वप्ना में पाणी नों पीवो। भोजन न करवो ते अतिचार नों "मिच्छामिदुक्कर्ड" इहां स्वतं जालादिक झूठा विपरीत स्वप्ना साधु नें आवता कह्या छे । तो इहां सांचो स्वप्न देखे इम क्यूं कह्यो । एहनों न्याय ए सर्व संबुड़ा साधु आश्री नथी। विशिष्ट अत्यन्त मिर्मल चारित्र नों धणी सम्वुड़ो स्वप्नो देखे ते आश्री कह्यो छै 1 तिहां टीकाकार पिण इम को छै । “सम्वृतश्चेह - विशिष्टतर सम्वृतत्व युक्तो ग्राह्यंः” इहां टीका में पिण इम कह्यो । सांची स्त्रप्नो देखे तो सम्बुडो विशिष्ट अत्यन्त निर्मल परिणाम नों धणी सम्बुड़ो ग्रहणो । इहां अत्यन्त निर्मल चारित्र आश्री सम्बुड़ो साचो स्वप्नो देखे कह्यो । पिण सर्व सम्बुडा आश्री नहीं । तिम अत्यन्तं विशिष्ट निर्मल परिणाम नों धणी कषाय कुशील अपड़िसेवी कह्यो जणाय छै 1 तथा दीक्षा लेतां पुलाक वक्कुस पडिसेवणा तजि कवाय कुशील में आवे ते वेलां डिसेबी को जणाय छै । तथा पुलाक वक्कुस पडिलेवणा नें पडिसेवी कला । ते कषाय कुशील पणो छांडी पुलाक बक्कुस पडिलेवणा में आवे ते दोष लगायां सेती आवे ते भणी यां तीना में पड़िसेवी कह्या । अनें कषाय कुशील में अपड़िसेवी कह्यो । ते दीक्षा लेतां कषाय कुशील पणो आघे ते वेलां अपड़िसेवी तथा पुलाक वक्कुस पड़िसेवणा तजि कषाय कुशील में आवे ते वेलां भागलो दंड लेइ अपड़िसेबी थावै। जिम पुलाक वक्कुस पड़िलेवणा पणा नें आदरता पडिसेवी कह्यो । तिम कषाय कुशील पणो आदरतां अपड़िलेवी कह्यो । - इण न्याय कषाय कुशील नें अपड़िसेवी कह्यो जणाय छै । पिण सर्व कषाय कुशील ना धणी अपड़िसेवी कह्या दीखे नहीं । जिम कषाय कुशील में ६ लेश्याांकही ते विण प्रमत्त गुणठाणा आश्री कही । पिण सर्व कवाय कुशील ना धणी में ६ श्या नहीं । तिम अपड़िसेवी कह्यो । ते पिण अप्रमत्त तुल्य विशिष्ट निर्मल चारित्र नो धणी दीसे छै । पिण सर्व कषाय कुशील चारित्रिया कथा दीसता न थी । जाहा हुवे तो विचारि जोइजो । अपड़िसेवी इति ११ बोल सम्पूर्ण । मली भगवती श० ५ ४० ४ एहवो को छै ते पाठ लिखिये है 1
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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