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________________ भ्रम विध्वंसनम् । अथ टीका में पिप इम को -ते गोशाला नों रक्षण भगवन्ते कियो ते सराम पणे करी अने सर्वानुभूति सुनक्षत्र मुनि नो रक्षण न करस्ये ते वीतराग पणे करि । ए तो गोशाला में बचायो ते सराग पणो को पिण धर्म न कह्यो । ए सरापणाना अशुद्ध कार्य में धर्म किम होय । अनें कोई कहे निरवद्य दया थी गोशाला नें बचायो तो दोय साधा 'न बचाया तिवारे भगवान् गौतमादिक सब साधु दयावान् इज हंता । जो बोशाला ने निरवद्य दया थी बचायो. तो दोय साधने क्यूंना पिण निरवद्य दया सूं बचायो नहीं । ए तो सराग पणा सूं बचायो है । दिन में सरायण कहो नावे सावय अनुकम्पा कहो भावे सावय दया कहो. पिण मोक्ष मार्ग नी निरवद्य अनुकम्पा निरवद्य दया नहीं । इहां तो शीतल तेजू लब्धि फोड़ी ने बचाओ चाल्यो है | अनें तेजू लब्धि फोड्यां ५ क्रिया कहो. ते माटे ए सावद्य अनुकम्पा थी गोशाला ने बचायो छै । एलब्धि फोडणी तो ठाम २ वर्जी है। लधि फोड्यां क्रिया कही प्रमाद नो सेववो कह्यो । बिना आलोयां विराधक को तो लब्धि फोड़ी गोशाला ने बचायो तिण में धर्म किम कहिये । डाहा हु तो विचारि जोइजो । 1 इति बोल ६ सम्पूर्ण | १६० केइ अज्ञानी जीव कहे जे अम्बड श्रावक वैक्रिय लब्धि फोड़ी ने सौ ai पारण कियो. सौ घरों वासो लियो ते धर्म दिखावण निमित्ते इस बड़े ते मृषावादी छै इमला फोड्यां तो मार्ग दीपे नहीं । जो लब्धि फोड्यां मार्ग दीपे तो पहिला गौतलादिक घणा साधु लब्धि धारी हुल्ता, ते पिण लब्धि फोड़ी नें मार्ग क्यूं न दिपायो । मार्ग दीपावण से तो भगवान् री आज्ञा छै । परं लब्धि फोडण री तो भगवान् री आज्ञा नहीं । ए वैक्रिय लब्धि फोड्यां तो पन्नवणा पद ३६ में ५ क्रिया कही छै, पिण धर्म न कह्यो. तो अम्वड सन्यासी वैक्रिय लब्धि फोड़ी ति नें पिण ५ क्रिया लागती दी है. पिण धर्म नथी । तथा भगवती श० ३ ८०४ को नयी विकुर्वे ते बिना आलोयां मरे तो विराधक को आलोयाँ आराधक | तिहां पण वैकिन लब्धि फोड़नी निषेधी है । जे साधु वैक्रिय लब्धि
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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