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________________ अनुकम्पाऽधिकारः - " - अ० अभयकुमार प्रते अनुकम्पा करतो जे तेह मित्र ने त्रिण उपवास रूप कष्ट छै एहबो चिन्तवतो थको. पु० पूर्व भव ( जन्म ) रो. ज० उत्पन्न हुवो थको. णे० स्नेह तथा पि० प्रीति बहुमान वालो देवता. जा० गयो छै शोक जेहनों. अथ इहां अभयकुमार नी अनुकम्पा करी देवता मेह बरसायो ए पिण अनुकम्पा कही. ते सावध छै के निरवदय छै। ए तो प्रत्यक्ष आज्ञा बाहिर छै। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो । इति ३७ बोल सम्पूर्ण। तथा जिनऋषि रयणा देवी री अनुकम्पा कीधी ते पाठ लिखिये छ । ततेणं जिण रक्खिा समुप्पण्ण कलुण भावं मच्चु गलत्थलणो ल्लिय मई अवयक्ख तं तहेव जक्खेओ से लए ओहिणा जाणिउण सणियं २ उव्विहइ २ णियग पिटाहि विगयसड्ढे ॥४१॥ (ज्ञाता अ०६) त० तिवारे. जि० जिण ऋषि ने. स० उपनो करुणा भाव ते देवी ऊपर. ह. मरण ना मुख में पड्यो थको. पो० लोलुपी थई छ मति जेहनी. एहवा जिन ऋषि में देखतो थको त. ते. ज० यक्ष. से० सेलक. प्रो० अवधि ज्ञाने करी जा० जाणी ने स० धीरे २ उ०:नीचे उतारयो णि आपनी पीठ सेती. वि० गत श्रद्धावन्त एहवा ने. ' अथ इहां रयणा देवी री अनुकम्पा करी जिनऋषि साहमो जोयो ए पिण अनुकम्पा कही ए अनुकम्पा मोह कर्म रा उदय थी के मोह कर्म रा क्षयोपशम थी। ए अनुकम्पा सावदय छै के निरवदद्य छै। आज्ञा में छै के:आज्ञा बाहिरे छ। विवेक लोचने करी विचारि जोइजो। ए पाछे कही ते अनुकम्पा आज्ञा बाहिर छ । मोह कर्म रा उदय थी हियो कम्पायमान हुवे ते माटे ए अनुकम्पा सावदय छै। तिवारे कोई कहे-रयणा देवी री करुणा करी जिन ऋषि साहमों जोयो ते तो
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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