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________________ - १६८ भ्रम विध्वंसनम् । गिरहइ २ त्ता तव अंतियं साहरित्ति तव अंतिए साहरित्ता । तं समयं चणं तुम्हें पि नवग्रहं मासाणं सुकुमालं दारए पसवसि जे वियणं देवाण प्पियाणं तव पुत्ता ते विय तव अंति. यातो करयल पुडे गिराहइ २ त्ता सुलसाए गाहावइणीए अंतिए साहरति । ( अन्तगड-तृतीय वा अष्ठमाध्ययन) त तिवार पर्छ. से० ते. हरिण गमेवी देवता. सु० सुलभा गाथापतिणीनी. पर अनुकम्पा ने दया ने अर्थे वि० मुश्रा बालक ने विगि० ग्रहे ग्रही ने त. तांहरे असमोपे सा मेले। तंतिवारे पडे. तु० ते नव मास पश्चात सुकुमार पुत्र प्रसव्या. तांहरे समीप सू तिण पुत्रां ने हरी ने करतल ने विषे ग्रहण करी ने गाथा पति नी सुलसारे कमे मेल्या। अथ यहां कह्यो-सुलसानी अनुकम्पा ने अर्थे देवकी पासे सुलसाना मुआ बालक मेल्या। देवकी ना पुत्र सुलसा पासे मेल्या ए पिण अनुकम्पा कही ए अनुकम्पा आज्ञा माहे के बाहिरे सावध के निरवध छै। ए तो कार्य प्रत्यक्ष आज्ञा बाहिरे सावध छै। ते कार्य नी देवता ना मन में उपनी जे ए दुःखिनी छै तो एहनों ए कार्य करी बुःख मेट्रं। ए परिणाम रूप अनुकम्पा पिण सावध छै। डाहा हुवे तो बिचारि जोइजो। इति ३३ बोल सम्पूर्ण। तथा श्री कृष्ण जी डौकरानी अनुकम्पा कोधी ते पाठ लिखिये हैं। तएणं से किण्ह वासुदेवे तस्स परिसस्स अनुकम्प ट्राए हत्थि खंध वर गते चेव एगं इहिं गिराहइ २ त्ता वहिया रययहाओ अन्तो अणुप्प विसंति ॥ ७४ ॥ ( अन्तगढ़ वग ३ अ.
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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