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________________ अनुकंपाऽधिकारः। १४० पा. वायरो. वु० वर्षात. सी० शीत. ताप. खे० राजादिक ना कलह रहित हुवे. ते क्षेम. धा० सुकाल. सि० उपद्रव रहित पणो. क० किवारे हुस्यै. ए० वायरा आदिक हुवे। अथवा मा थास्यौ इति इम साधु न बोले. अथ अठे कह्यो बायरो वर्षा, शीत. तावड़ो.राज विरोध रहित सुभिक्ष पणो. उपद्रव रहित पणो. ए ७ बोल हुवो इम साधु ने कहिणो नहीं। तो करणो किम् उदरादिक ने मिनकियादिक थी छुड़ाय ने उपद्रव पणा रहित करे ते सूत्र विरुद्ध कार्य छै । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो। . इति २१ बोल सम्पूर्ण । तथा सूयगडाङ्ग श्रु० २ ० ७ में पिण आपरा कर्म तोड़वा तथा भागलान तारिवा उपदेश देणो कह्यो छै। तथा ठाणाङ्ग ठा० ४ पहवो पाठ कह्यो ते लिखिये छै। । चत्तारि पुरिस जाया प० तं० आयाणकपाए नाम मेगे णो पराणुकंपए। (ठाठा०४) च० चार पुरुष जाति परूप्या. त० ते कहे है. प्रा० पोताना हित ने विषे प्रवर्ते ते प्रत्येक बुद्ध अथवा जिन कल्पी अथवा परोपकार बुद्धि रहित निर्दय. णो० पारका हित ने विषे न प्रवर्त १ पर उपकारे प्रवते ते पोता ना हित ना कार्य पूरा करीने पछे परहित ने विषे एकान्ते प्रवते ते तीर्थकर अथवा "मेतारज" वत् २ तीजो वेहूनों हित वांछे ते स्थविरकल्पी साधुवत ३ चोथो पापमात्मा बेहूंनों हित न बांछे ते कालकसूरीवत. ४ अथ अठे पिण कह्यो। जे साधु पोतानी अनुकम्पा करे. पिण आगला मी अनुकम्पा न करे। तो जे पर जीव ऊपर पग न देवे. ते पिण पोतानी ज अनुः कम्पा निश्चय नियमा छै। ते किम पहनें मासा मोनें इज पाप लागसी. इम जाणी
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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