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भ्रम विध्वंसनम्।
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री आज्ञी छै अ श्रावक नो तो आहार अव्रत में छै । तीर्थङ्कर नी आज्ञा बाहिर है। श्रावक ने तो जेतलो पचखाण छै ते धर्म छै। अब्रत छै ते अधर्म छै। ते मार्ने असंयम मरण जीवण री बांछा करे ते अव्रत में छै। डाहा हुवे तो विचार जोइजो।
इति १७ बोल सम्पूर्ण ।
तथा सूयगडाङ्ग अ० २ में पिण संयम जीवितव्य दुर्लभ कह्यो। ते पाठ लिखिये छै।
सं बुज्झह किं न बुझह संवोही खलुपेञ्च दुल्लहा। णो हुउ वणमंत राइओ णो सुलभं पुण रावि जीवियं ।
( सूयगडांग श्रु० १ ० २ गा० १)
सं० श्री श्रादिनाथ जी ना ६८ पुत्र भरतेश्वर अपमान्या संवेग उपनें ऋषभ पागल श्राव्या से प्रते एह संबंध कहे छै. अथवा श्री महावीर देव परिषदा माहे कहे. अहो प्राणी तुम्हें बझयो काइ नथी वूझता, चार अंग दुर्लभ. सं० सम्यग ज्ञानवोधि ज्ञान दर्शन चरित्र. ख० निश्चय. पे० परलोक ने अति ही दुर्लभ छै. णो अवधारणे. जे अतिक्रमी गइ. रा० रात्रि दिवस तथा यौवनादिक पाछो न आवे पर्वत ना पाणी नी परे णो० पामतां सोहिलो नथी. पु० वली. जी. संथम जीवितव्य पचखाण सहित जीवितव्य
अथ अठे पिण संयम जीवितव्य दोहिलो कह्यो। पिण और जीवितव्य दोहिलों न कह्यो। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो ।
इति १८ बोल सम्पूर्ण।
तथा नमी राज ऋषि मिथिला नगरी बलती देखी साहमो जोयो न कह्यौं । । ते पाठ लिखिये है।