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________________ भ्रम विध्वंसनम् । - #vtvvvvv बहुबचन क्यूं कह्यो। तत्रोत्तरं-इहां बहुबचन नहीं. ए तो एक बचन छै। इहो पाण-अनुकंपयाए. ए विहूंनो अकार मिली दीर्घ थयो छै। ते माटे “पाणानुकंपयाए. कह्यो। इण न्याय एक वचन छै। ते माटे एक सुसला री दया थी परीत संसार कियो । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो। इति ४ बोल सम्पूर्ण । फेतला .एक कहे-पडिमाधारी साधु लाय में पलता में कोई बाहि पकड़ने बाहिर का तो तेहनी दया ने अर्थे निकल जाय, ते इम• आणे हूं लाय में रहि तूं तो ये वल जास्येः। इम जाणी तेहनी दया ने अर्थे बाहिर निकलवो कल्पे दशाश्रुतस्कंध में एहबूं कह्यो छै। इम कहे ते मृषावादी छै सूत्र ना अजाण छ। तिण ठामे तो दवा नो नाम चाल्यो नहीं। तिहां प्रथम तो पडिमाधारी नी गोचरी नी विधि कही। पछे बोलवारी विधि कही। पछे उपाश्रय नी विधि कही। पछे संथारा नी विधि कही । पछे तिहां रहितां परिषह उपजे तेहनों विस्तार कह्यो । इम जुई जुई विधि कही छै। तिहां इम कह्यो छै। पडिमाधारी रहे ते उपाश्रय में विषे स्त्री पुरुष अकार्य करवा आवे. तो ते स्त्री पुरुष आश्री पडिमाधारी साधु ने निकलयो न कल्पे। वली पडिमाधारी रह्यो तिहां कोई अग्नि लगावे तो अग्नि आश्री निक लवो न कल्पे ! ए तो अग्नि नों परिषह खमवो कह्यो। वली तिहां रहितां कोई बध ने अर्थे खड्डादिक ग्रही ने आवे तो तेहना खङ्गादिक अवलम्बवा न कल्पे । ए वध परिषह खमवो कह्यो। इम न्यारा २ विस्तार छै पिण एक विस्तार नहीं ते पाठ लिखिये छ। मासिएणं भिक्खु पडिमं पडिवन्नस्स अणगारस केइ उबसयं अगासिकाएण झामेजा णो से कप्पइ :तं पडुच्च निमित्तए. वा पविसित्तए वा तत्थणं केइ वहाय गहाय आगच्छे जाव णो से कप्पइ अवलं वितए वा पवलं वितए या सम्पइ से आहारियं रियत्तए ॥१३॥ दशा शुबस्कप दशा
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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