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भ्रम विध्वंसनम्
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ते माटे भला व्यापार नहीं। तथा निशीथ उ० १५ गृहस्थ ने रजोहरण पूजणी आदिक दियां देतांने भलो जाण्या चौमासी प्रायश्चित कह्यो छै। पंजणी देतां ने भलो जाण्या ही प्रायधित आवे तो गृहस्थ माहोमाही पूंजणी आदिक देवे त्यांने धर्म किम कहिये।
कोई कहे साधु गृहस्थ में सामायक पालणी सिखावे-परं पलाये नहीं पलायारी आज्ञा देवे नहीं तो पालणी किम सिखावे। तत्रोत्तरम्-एक मुहूर्त नी सामायक कीधी । अनें एक मुहूर्त वीतां पछे सामायक तो पल गई. ए तो आलो. वणा री पाटी छै। ते आलोवणा करण री आशा छै। धर्म छै। ते भणी आलो. वण री पाटी सिखावै छै ते आज्ञा बाहिरे नहीं। अनें साधु पलावे नहीं ते उठवा रो ठिकाणो जाण ने पलावे नहीं। जिम किण ही पौरसी कीधी ते जीमण रे अर्थे साधु ने पूछे। साधु पौहर दिन आयो जाणे तो पिण बतावे नहीं। तिम उठण रो ठिकाणी जाण ने पलावे नहीं। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो।
इति ४२ बोल सम्पूर्ण।
इति दानाऽधिकारः समाप्तः।
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