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________________ भ्रम विध्वंसनम् । पोषा में भंश घोसिरायो छै। भगवान् कह्यो हां वोसिरायो छै। ते: पोसिरायो तो वलो पोता नो भंड किण अर्थे कह्यो। जद भगवान कह्यो ते सामायक में इम चिन्तवे छै। ए रूपो सोंनों रत्नादिक माहरा नहीं इम बिचारे पिण तेहने ममत्व भाव छूटो नथी। इम कह्यो तो जोवीनी सामायक में ममत्व भाव छूट्यो नहीं। ते माटे ते धनादिक तेहनों इज कह्यो अनें वोसिरायो कह्यो छै। ते धनादिक थी सापद्य कार्य करवो त्याग्यो छै। पिण तेहनों ममत्व भाव मिट्यो नहीं। ते भणी ते धनादिक एहनों इज छै। ते माटे सामायक:में साधु ने बहिरावे ते कार्य निरवद्य जैते दोष नथी। जिम धन नों कह्यो तिम आगले आलावे स्त्री नों:कह्यो। तो सामायक में पिण स्त्री में वोसिराई कही छै। तेहनी साधु पणा री आज्ञा देवे तो आहार नी भाशा किम न देवे। स्त्रियादिक बहिरावे तो आहार किम न बहिरावे। दहाँ तो सूत्र में धन नों अनें स्त्री नों पाठ एक सरीखो कह्यो छ। ते माटे बहिरायां दोष नहीं। जिम आवश्यक सूत्र में कह्यो-साधु एकाशणा में एकल ठाणा में गुरु आयो उठे तो पचखाण भांगे नहीं। तो श्रावक नी सामायक किम मांगे। अकस्पतो कार्य कियां सामायक भांगे पिण निरवद्य कार्य थी सामायक किम भांगे। श्रावक रे साधु ने बहिरायां १२ मो व्रत निपजे छै। अनें व्रत थी सामायक भांगे श्रद्ध, त्यांने सम्यग्दृष्टि किम कहिये। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो । इति २६ बोल सम्पूर्ण। यली केसला एक पाषंडी श्रावक जिमायां धर्म श्रद्ध। तिण ऊपर पड़ि माधारी जिन कल्पी अभिग्रहधारी साधु रो नाम लेवे। तथा महावीर रा साधु ने पार्श्वनाथ ना साधु अशनादिक देवे नहीं ते कल्प नहीं तिणसू न देवे पिण गृहस्थ त्यांने बहिरावे तिण ने धर्म छै। तिम श्रावक ने अशनादिक साधु देवे महीं , ते साधु रो कल्प नहीं तिण सूं न देवे छै। पिण गृहस्थ श्रावक ने जिमावे तिण में धर्म छ। इम कुहेतु लगाय में श्रावक जिमायां धर्म कहे छै। तेहनो उत्तरमहावीर ना साधु ने श्री पाननाथ नाःसाधु अशनादिक देवे नहीं। ते तो त्यारो कल्प नहीं। पिण महावीर ना साधु में कोई गृहम भाहार देबे सेहने पार्श्वनाथ ना
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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