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________________ ६८ भ्रम विध्वंसनम् । न्याय दीधा है | अनें आप रो मत थापवा आर्द्र कुमार मुनि ने झूठो कड़े ते मृपावादी जाणवा । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो । हात १० बोल सम्पूर्ण । वली भग्गु रे पुत्र पण पिताने इम कह्यो, ते पाठ लिखिये छ 1 या अहया न भवतिताणं भुत्तादिया निंति तमंत में । जायाय पुता न हवंति मां कोणाम ते अग मन्नेजयं ॥ ( उत्तराध्ययन ० १४ गा० १२ ) वेद भाव हुन्ती न० नहीं. भ० थाय जीवा नें. त्राण शरण श्रने भु० ब्राह्मणा ने जिमाया हुन्ता ने पहुंचाडे तमतमा नरक ने विषे. गां० कहतां वचनालङ्कार जा० श्रात्मा की ऊपना. पु० पुत्र ननधाय नरकादिके पड़ता जीवां ने त्राण शरण. छानें जो पुत्र थी शिवगति होवे तो दान धर्म निरर्थक गो इस छे. ते माटे. को० कुया नाम संभावनो. ते तुम्हारू वचन श्र माने पूर्वोक्त वेदादिक भएको ते एतले विवेकी हुवे ते तुम्हारू वचन भला करी न जाये । ए अथ इहां भग्गु ने पुत्रां कह्यो– वेद भग्या त्राण न होवे । ब्राह्मण जिमायां तमतमा जाय तमतमा ते अंधांरा में अंधांश ते एहवी नरक में जाय । इम कल्लो-जो विप्र जिमाया पुण्यगंधे तो नरक क्यूं कही । इहां के इम कहै एहवो भग्गु ना पुत्रां कह्यो ते तो गृहस्थ हुन्ता त्यांरे झूठ बोलवा रा किसा त्याग था । इम कडे त्यांने इम कहिणो । पुलां तो घणा बोल कह्या है । वेद भण्या त्राण शरण न हुवे । पुल जन्म्या पण दुर्गति न टले । जो ए सत्य है तो ए पिण सत्य है । और वोल तो सत्य कहे - आपरी श्रद्धा अटके ते वोल ने डूंडो कहै । त्यां जीवों में किम सम झाविये । वली भग्गु ना पुलां ने गणधर भगवन्ते सा है । ते किम तेहनी पहिली ग्यारसी गाया में इम को छै । “कुमारणा ते पसमिक्खवक” पहनो अर्थ"कुलारग" कहि कुमार "ते पक्खि" कहितां आलोची विमासी विचारों से पवन बोलावे छे। हम गगरेको विमासी आलोची बोले तेहनें झूठा किम कहिये । तथा केवला एक इन कहे र तो भग्गु ना पुत्र को पिताजी ! तुम्हें कलामा ते मिथ्यात्व लागे इम अयुक्ति लगावी तमतमा मिथ्यात्व
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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