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________________ भ्रम वियसनम्। ने एकान्त बाल कह्यो साधु ने एकान्त पण्डित कहो। इत्यादिक अनेक ठामे एकान्त शब्द कमा छै, एक पाप छै पिण बीजो नहीं ! अन्त कहितां निश्चय करके तेहने एकान्त पाप कहिये। हेम नाममाला में ६ काण्ड में ६ वां श्लोक “निर्णयो निश्चयोऽन्तः' इहां अन्त नाम निश्चय नो कह्यो छै। तथा भगवती श. ७ उ० ६ “एकन्तमतंगच्छ३" ए पाठ में एगन्त शब्द कह्यो छै। तेहनो अर्थ टोका में इम कह्यो छ । ते टीका एगंमित्ति-एक इत्येवमं तो निश्चय एवासावेकान्तः इत्यर्थः'' एहनो अर्थ-एक अन्त कहितां निश्चय ते एकान्त, एतले एक कहो भावे एकान्त कहो। इम अन्त कहितां निश्चय कह्यो छै एक अन्त कहितां निश्चय करी पाए ते एकान्त पाप छ। एक पाप इज छै पिण और नहीं इम निश्चय शब्द कहिवो। अनें एकान्त शब्द नो भ्रम पाड़ी एकान्त पाप मिश्यात्व ने इज ठहिरावे छै ते मृषाघादी छै। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो । इति ३ बोल सम्पूर्ण। वली "पडिलाममाणे" ए शब्द थी साधु जाणी देवे इम थापे छै। ते पिण झूठा छै। ए “पडिलाभमाणे" तो देवा नो छै। इहां साधु नो तो नाम वाल्यो नहीं। ए तो 'पडि' कहतां परि उपसर्ग छै। अने लाभ ते “लभ-आपणे" आपण अर्थ ने विषे लभ धातु छै । ते पर अनेरा ने वस्तु नो लाभ तेने पडिलाझ कहिई। साधु जाणी ने श्रावक देवे तिहां “पडिलाभ माणे" पाठ कह्यो तिम साधु ने असाधु जांणी हेल्या निन्दा अवज्ञा कर कोई धर्म रो द्वेधी अपमान देई जाहर सरीखो अमनोज्ञ आहार देके तिहाँ पिण “पडिलाभ माणे" पाठ कह्यो छ। है प्रते लिखिये छै । कहणं भंते ! जीवा असुभदीहाउ यत्ताए कम्मं पकरंति मोचमा ! पाणे अखाएत्ता मुसंवइत्ता तहारूवं समणंवा
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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