________________
or दानाऽधिकारः ।
कोई कहे असंयती ने दीर्घा पुण्य पाप न कहिणो । मौन राखणी । भने जे 1 पाप कहे ते आगला रे अन्तराय से पाटुणहार छै। उपदेश में पिण पाप न कहिणो । उपदेश में पिण पाप कह्यां आगलो देसो नहीं जद अन्तराय पड़े, ते भणी उपदेश में पिण पाप कहिणो नहीं, मौन राखणी । इम कहे तेहनो उत्तर- - साधुरे मौन कही ते वर्त्तमानकाल आश्री कही छै । देतो लेतों इसो वर्त्तमान देखी पाप न कहे। उ वेलां पाप कह्यां जे लेवे छै तेहनें अन्तराय पड़े ते माटे साधु वर्त्तमाने मौन राखे । तथा कोई अभिग्रह मिथ्यात्व नो धणी पूछे—तठे पिण द्रव्य क्षेत्र काल भाव भवसर देखने वोलणो । पिण अवसर बिना न बोले। जद आगलो कहै --जे वर्तमान में अन्तराय न पाडणी, अन्तराय तो तीनुहीं काल में पाहुणी नहीं । अने उपदेशमें पाप कह्यां आगलों देसी नहीं जद आगमिया काल में अन्तराय पड़ी इम कह तेहने इम कहिणो । इम अन्तराय पड़े नहीं अन्तराय तो वर्त्तमानकाल में इज कही छै । पिण और वेलां अन्तराय कही नहीं । अनें उपदेशमें हुवे जिसा फल बतायां अन्तराय श्रद्ध तिरे लेखे तो किणही ने दीघां पाप कहिणो नहीं । कसाई चोर भाल मेर मेंणा अनार्य म्लेच्छ हिंसक कुपात्रा ने दीघां पाप कहे तो तिणरे लेखे अन्तराय से प्राणहार छै । वली अधर्मदान में पिण पाप किणही काल में कहिणो नहीं । पाप कह्यो आगलो देवे नही तो त्यारे लेखे उठे पिण अन्तराय पाड़ी, वेश्या नें कुकर्म करवा देवे, तिण में पिण पाप कहिणो नहीं । पाप कह्यां वेश्या नें देसी नहीं जद आगामी काले अत्तराय पड़ती । धुर नें वाघिसाटे धान दीघां उपदेश में पाप कहिणो नहीं, पाप कह्यां देसी नहीं, तो तिणरे लेखे अन्तराय पड़सी । वली खर्च वरोटी जीमणवार मुकलावो पहिरावणी मुसालादिक नाटकियादिक ने दीघां-पिण पाप कहिणो नहीं, इहां पिण तिणरे लेखे अन्तराय पड़े छे । वली सगाई कियाँ पिण पाप कहिणो नहीं
।
पाप कह्याँ पुत्रादिक नी सगाई करे नहीं, जद पिण त्यांरे लेखे अन्तराय पड़े। इण श्रद्धा रे लेखे कुपात्रदान में पिण पाप