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________________ मिथ्यात्वि क्रियाऽधिकारः। बाहिरे छै। पिण तिण सावध थी पुण्यबंधे अने देवता थाय छै । इम ऊधी थाप करे तेहनो उत्सर । जे उबाई में धणा पाठ कह्या छै। हाथी मारी खाय ते हाथी तापस पिण मरी देवता थाय इम कहो। मृग सायम मृग मारी खाय ते पिण मरी देवता थाय इम कह्यो । तो जे हायीताएस. मृगतापस देवता थाय । ते हाथी मृग मारे तेहथी तो थावै नहीं। पुण्यवंधै ते तापसादिक में अनेरा शील तप आदिक गुण छै तेहथी तो पुण्यबंधे अने देवता हुवे । तिम मातापिता नो विनय को तेहया जीवां में पिण और भद्रकादि भलागुणाधी पुण्यबंधे देवता थाय । पिण मातापिता री शुश्रूषा यो देवता हुवे नहीं । गुण थी देवता हुवे छै। तिहां एहवो पाठ कह्यो छ । से जे इमे गासागर नगर जाव सन्निवसेसु मणुआ भवंति–पगति भदका पगति उपसंता. पगति पत्तणु कोह माण माया लोभा मिउ मदव संपन्ना अलीणा वीणिया अम्मा पिनो उसुस्सुसका अम्मापित्ताणं अतिकमणिजवयणा अप्पिच्छा अपारंभा अप्प परिग्गहा अप्पेणं आरंभेणं अपेणं समारंभेणं अप्पेणं आरंभ समारंभेणं वित्तिक-पेमाणा बहूई वासाई आउयं पालंति पालित्ता कालमासे कालं किचा अनुत्तरेसु वाणमंतरेसु देवत्ताए उववत्तारो भवन्ति, तच्चेय सव्वंणवरं-ठिति चोदसवास सहस्साई॥ ( सूत्र उवाई प्रब से ते. जे जे गा० ग्राम प्रागर. नगर. यावत. स. सन्निया ने विपे. म० मनुष्य हुवे छै (ते कहै छ) ५० प्रकृति भद्रा कुटिलपणा रहित प० प्रकृति स्वभावे जे क्रोधादिक उपशाम्या छ । ५० प्रकृति स्वभावे पतला की० क्रोधमान माया लोभ मूळ रूप छै जेहनें मिल मृदुसुकोमल, म० 'अहंकार नो जीतबो तेणेकरी ने सहित ऋ० गुरु ना चरण आश्रीते रह्या वि० विनीत सेवा भक्ति ना करणहार अ० मातापिता ना सेवाभक्ति ना करथ हार. मातापिता नो वचन कथन उल्ल'धे नहीं. अल्पाइ-छा मोटीवांचा जेहनें नहीं । अ० अलायोगे प्रारंभ प्रथिव्यादिक ना उपद्रव्य कनादिक जेहने. अ० अल्पथोड़ो परिग्रह धाधान्यादि कली सूची जेहने । अ० अस्पोडो भारंस जोको विमाश जेइने देशकरी. अ अप थोड़ो हमारभ जीवने परितापन,
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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