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________________ भ्रम विध्वंसनम् । नता ३ विविक्त सयणासण सेवणया ४ । अनें इन्द्रिय प्रतिसंलीनता ना ५ भेदा में रस इन्द्रियप्रति संलीनता "निर्जरा ना वारह भेद चाल्या" ते मध्ये कही छे । ते निर्जरा ने आज्ञा बाहिरे किम कहिये । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो । इति २७ बोल सम्पूर्ण । ४४ 1 वली बीजे संवरद्वार प्रश्न व्याकरण में श्रीवीतरागे सत्य वचन ने घणो प्रशंस्यो छे ते सत्य निरवद्य आज्ञा माही छै । तिहां एहवो पाठ छै । अग पाखंड परिग्गहियं जं तिलोकम्मि सारभूयं गंभीरतरं महासमुद्धा थिरतरगं मेरु पञ्चचाओ । ( प्रश्न व्याकरण संवरद्वार २) ० अनेक पाखंडी ग्रन्य दर्शनी तेणे. प० परिग्रह्यो आदरयो । जं० जे. त्रिलोक माही सा० सारभूत प्रधान वस्तु है। तथा गं० गाढ़ोगंभीर अज्ञोभित थकी म० महासमुद्र थकी हवा सत्यवचन थि स्थिरतरगाढ़ो. मे० मेरुपर्बत थकी अधिक अचल । इहां कह्यो- सत्यवचन साधुने आदरवा योग्य छै । वे साथ अनेक पापंडी अन्य दर्शनी पण आदो कह्यो ते सत्यलोक में सारभूत कह्यो । सत्य महासमुद्र थकी पिग गम्भीर को मेरु थकी स्थिर कह्यो एहवा श्रीभगवन्ते सत्यने बखाणयो । ते सत्यने अन्यदर्शनी पण धालो । तो ते सत्यने खोटो अशुद्ध किम कहिये । आज्ञा वाहिरे किम कहिये । आज्ञा वाहिरे कहे तो तेहनी ऊधी श्रद्धा छै पिण निरवद्य सत्य श्री वीतरागे सरायो ते आज्ञा वाहिरे नहीं । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो । इति २८ बोल सम्पूर्ण | वली जीवाभिगमे जम्बूद्वीप नी अगतीने ऊपर पद्मवर वेदिका भने वनखंडने विषे वाणव्यन्तर क्रीड़ा करे तिहाँ पहवा. पाठ कथा है । .
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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