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श्रावक जीवन-दर्शन / ४५ भर के ढ़क कर लाये हुए, मार्ग में अशुचि व्यक्ति या वस्तु के स्पर्श बिना लाये हुए पानी, पुष्प आदि का उपयोग करना चाहिए । पानी लाने वाले को उचित मूल्य देकर खुश करना चाहिए ।
उसके बाद मुखकोश को बाँध कर पवित्र भूमि पर बैठ कर जीवरहित साफ किये हुए बढ़िया केसर, कपूर आदि से मिश्रित चन्दन को घिसना चाहिए ।
उत्तम धूप, दीप, कंकड़ व कचरे से रहित प्रखंड स्वच्छ बासमती चावल आदि विशिष्ट एवं बिल्ली या बालक आदि के द्वारा जो जूठी नहीं की गई हो ऐसी मिठाई, सरस व सुन्दर फल आदि सामग्री इकट्ठी करनी चाहिए । यह सब पूजा के लिए द्रव्य -शुद्धि है ।
भाव- शुद्धि
राग, द्वेष, क्रोध, मान, माया, लोभ, ईर्ष्या, इस लोक और परलोक के कौतुक तथा उलझन आदि का त्याग कर चित्त की एकाग्रता ही भाव-शुद्धि है। "भगवान की पूजा के समय मन, वचन, काया, वस्त्र, भूमि, उपकरण तथा विधि; प्रकार की शुद्धि करनी चाहिए ।" इस प्रकार द्रव्य और भाव से शुद्धि करके प्रवेश करना चाहिए ।
सुख की इच्छा,
कहा भी हैइस तरह सात घर - मन्दिर में
जिनमन्दिर में प्रवेश
जिनमन्दिर की दाहिनी दिशा को श्राश्रय कर पुरुष को और बायीं दिशा को श्राश्रय कर स्त्री को मन्दिर में प्रवेश करना चाहिए। जिनमन्दिर में प्रवेश करते समय जिनमन्दिर की सीढ़ी पर सर्वप्रथम पुरुष और स्त्री को अपना दायाँ पैर रखना चाहिए ।
पूर्व सम्मुख अथवा उत्तर सम्मुख रह कर चन्द्रनाड़ी बहते समय मधुर पदार्थों से मौनपूर्वक देव- पूजा करनी चाहिए ।
संक्षेप में देवपूजा की विधि बतलाते हैं-तीन बार निसीहि, तीन बार प्रदक्षिणा, पिण्डस्थ, पदस्थ और रूपातीत इन तीन अवस्थाओं का चिन्तन आदि विधि करने के बाद पवित्र पाटले पर पद्मासन आदि सुखकारक प्रासन में बैठ कर चन्दन के भाजन में से दूसरे पात्र में अथवा हथेली में चन्दन लेकर कपाल पर तिलक एवं हाथ पर कंकरण करके चन्दन व धूप से वासित हाथ से जिनेश्वर की पूजा करके श्रागे कही जाने वाली विधि से अंग, अग्र और भावपूजा करके पहले किया हो अथवा न किया हो तो भी प्रभुसाक्षी में यथाशक्ति पच्चक्खारण करना चाहिए ।
जिनमन्दिर जाने की विधि
जिनमन्दिर को जाने वाला यदि राजा हो तो उसे जिनशासन की महिमा बढ़ाने के लिए समस्त ऋद्धि, ऐश्वर्य, सर्वयुक्ति, सर्वबल, सर्वपराक्रम के साथ जाना चाहिए
■ सुखी जैन-गृहस्थ के घर में जिनमन्दिर रखने की विधि है ।