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प्राविधि/३४२ हो जाय और मेरु अणु हो जाय, आकाश में कमल पैदा हो जाय और गधे के सींग उत्पन्न हो जाय फिर भी कल्पान्त काल में भी धीर पुरुष शरणागत को नहीं छोड़ते हैं।"
शरणार्थी की रक्षा के लिए धीर पुरुष विशाल राज्य को भी रजकण के समान गिनते हैं, धन का भी नाश कर देते हैं और अपने प्राणों को भी तृणतुल्य गिनते हैं।
__ यह बात सुनकर रत्नसार कुमार कमल के समान कोमल हाथों से उसके पंखों का स्पर्श करते हुए बोला-“हे हंसिनी! कायर की तरह मत डरो, मत डरो! मेरी गोद में बैठी हुई तुझे कोई राजा, विद्याधरेन्द्र, सुरेन्द्र तथा असुरेन्द्र भी हरण करने में समर्थ नहीं है। हे हंसिनी! तू मेरी गोद में बैठी होने पर भी शेषनाग के द्वारा त्यागे हुए केंचुए के समान निर्मल अपने पंखों को क्यों हिला रही है ?"
इतना कहकर सरोवर में से निर्मल जल और सरस कमल लाकर उसे प्रसन्न किया। उस समय कुमार आदि के मन में यही संशय था कि “यह कौन है ? कहाँ से आई है ? किससे भयातुर है ? और यह मनुष्य की भाषा कसे बोलती है ?"
इसी बीच-"तीन लोक का अन्त करने वाले कृतान्त को किसने कुपित किया है ? अपने जीवन से उद्विग्न बना कौन शेषनाग की मणि का स्पर्श कर रहा है? कल्पान्तकाल की अगनज्वालाओं में अचानक कौन प्रवेश करता है।"
इस प्रकार बोलते हुए शत्रुओं के करोड़ों सैनिकों के शब्द सुनाई पड़े।
उस समय शंकित चित्तवाला वह पोपट सावधान होकर शीघ्र जिनमन्दिर के गृहद्वार में आ गया और उसने उसके स्वरूप का वर्णन किया-"उसी समय गंगा के तीव्र प्रवाह की भाँति प्राकाशमार्ग से आती हुई विद्याधर राजा की अत्यन्त भयंकर सेना दिखाई दी। मानों तीर्थ के प्रभाव से, भाग्य के प्रभाव से भाग्यशाली कुमार के अद्भुत भाग्योदय से अथवा कुमार के संसर्ग से वीरव्रत को धारण करने वाले तोते ने धीरवाणी से उन सैनिकों को हांकते हुए कहा-"अरे वीर विद्याधरो ! तुम दुष्ट बुद्धिवाले कहाँ दौड़ते हो? देवताओं से भी अजेय सामने रहे कुमार को नहीं देखते हो? जैसे गरुड़ अभिमानी सॉं के अभिमान को दूर करता है वैसे ही स्वर्णकाय वाला यह कुमार अहंकारी सर्यों की तरह दौड़ने वाले तुम्हारे अभिमान को शीघ्र ही दूर कर देगा। अरे ! यम के समान इसके कुपित होने पर युद्ध तो दूर तुम्हारा भाग कर भूमि को पार करना भी कठिन हो जायेगा।"
वीर की हाँक के समान पोपट की इस हाँक को सुनकर वे शीघ्र ही खिन्न, विस्मित और भयभीत होकर मन में सोचने लगे,-"पोपट के रूप में यह कोई देव अथवा दानव लगता है, अन्यथा यह विद्याधरों को भी कैसे हाँक सकता है ? अहो! पूर्व में हमने विद्याधरों के सिंहनादों को भी सहन किया है और अब इसकी हाँक को भी सहन करने में कैसे असमर्थ हो गये हैं ? जिसका पोपट भी विद्याधरों को भयभीत करने वाला इतना वीर है, तो पता नहीं आगे खड़ा वह कुमार कसा होगा?"
युद्ध में अग्रणी होने पर भी अज्ञातस्वरूप वाले के साथ युद्ध कौन करे ? कोई तैरने का