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________________ श्राद्धविधि/३३२ नहीं दिया तब वाचाल की भाँति वह पोपट बोल उठा, "सभी अवसरों को जानने वाले तुम अवसर प्राप्त कर विलम्ब क्यों करते हो?" "हे महर्षिकुमार ! कुमार के कुल आदि को जानने से क्या मतलब है ? क्या आपने कोई विवाह-कर्म प्रारम्भ किया है ? आप औचित्य में चतुर हो फिर भी आपको औचित्यकृत्य कहता हूँसभी व्रतीजनों को भी अतिथि पूज्य होता है। लौकिक शास्त्र में भी कहा है-"ब्राह्मणों का गुरु अग्नि है, सभी वर्गों का गुरु ब्राह्मण है, स्त्रियों का गुरु एक पति है और अतिथि सबका गुरु है।" अतः यदि तुम्हारा चित्त कुमार में हो तो खुश होकर पहले उसका अतिथि-सत्कार करो, अन्य सब विचारों से क्या मतलब है ?" तोते के इस प्रकार के वचनों से सन्तुष्ट बने तापसकुमार ने तोते के गले. में मोतियों की माला की भाँति अपनी फूलों की माला डाल दी और बोला, "हे कुमारेन्द्र ! विश्व में प्रशंसनीय तो तुम ही हो जिसके पास तोता भी बोलने में इतना चतुर है। हे भावज्ञकुमार ! आप शीघ्र ही सौभाग्य से अनुत्तर ऐसे घोडे पर से नीचे उतरो और अतिथि बनकर हमें कृतार्थ करो।" विकस्वर उत्तम कमलवाला एवं पानी से निर्मल यह सरोवर, अखंड वनखंड और स्वयं मैं हम सब आपके प्राधीन हैं। मेरे समान तापस द्वारा तुम्हारो कौनसी भक्ति (आतिथ्य/सत्कार) हो सकती है? नग्न क्षपणक के आश्रम में राजा को क्या भक्ति हो सकती है? फिर भी के अनुसार आपकी कुछ भक्ति बतलाना चाहता हूँ। क्या करोर का वृक्ष भी अपनी छाया से कभी विश्रान्ति देने वाला नहीं बनता है। अतः आप शीघ्र ही कृपा करके हमारी विज्ञप्ति को स्वीकार करो, क्योंकि सत्पुरुष कभी किसी की प्रार्थना को भंग नहीं करते हैं ? पूर्वप्रेरित शकुन से कुमार वैसा ही चाहता था, अतः उन वचनों को सुनकर कुमार अश्व पर से नीचे उतर गया। पहले मन से और अब देह से भी जन्म से मित्र की भाँति वे दोनों परस्पर मिले । एक-दूसरे से हाथ मिलाते हुए वे दोनों परस्पर अपनी प्रीति को स्थिर करने के लिए इधरउधर घूमे। - परस्पर प्रीति से मनोहारी हस्तमिलाप करते हुए वे दोनों वन में विचरते हुए हाथी के बच्चों की भाँति शोभा देते थे। तापसकुमार ने उसे पर्वत, नदिया, सरोवर आदि समस्त क्रीड़ास्थलों को मानों अपना ही धन न हो, इस प्रकार बतलाया। तापसकुमार ने फल-फूल की ऋद्धि से भारी बने हुए अपने गुरु के जैसे कुछ आश्चर्यकारी वृक्ष नाम लेकर कुमार को दिखाये। उसके बाद अपनी थकावट दूर करने के लिए तापस की सूचना से कुमार ने हाथी की भाँति तालाब में स्नान किया। .. स्नान के बारे में पूछने के बाद ऋषि अमृत के समान अंगूर लाये, जिनको आँखों से देखकर व्रतधारी का मन भी खाने के लिए उत्सक हो जाय, ऐसे पके हए सन्दर आम लाये। नारियल व केले के अनेक फल, पकी हुई क्षुधाकरी तथा खजूर के फल, अत्यन्त स्वादिष्ट रायण के फल तथा पके आँवले, स्निग्धता वाली चारोली, अच्छे बीज एवं फल, अत्यन्त मधुर बीजोरे, नारंगी, अत्यन्त सुन्दर दाडिम, जम्बीर, जामुन, बोर, गूदे, पीलू, पनस के फल, सिंघोड़े, चीमड़े, ककड़ी आदि विविध फल लाये। कोमल द्राक्षा का पानी, नारियल का पानी तथा तालाब का रसवाला पानी कमलपत्र में भरकर लाये। शाक के स्थान में कच्ची अम्लइमली तथा नींबू आदि स्वादिम के स्थान पर कुछ
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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