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श्राद्धविषि/२७४
(6) प्रारम्भ का त्याग कर-श्रावक तीव्र प्रारम्भ का त्याग करता है, निर्वाह न होता हो और करना पड़े तो अनिच्छा से करता है। प्रारम्भरहित जीवों की स्तुति करता है और सर्वजीवों में दयालु होता है।
(7) गहवास को बन्धन माने-गृहवास को पाश की तरह मानता हुअा श्रावक उसमें दुःखी मन से रहता है और चारित्रमोहनीय की निर्जरा के लिए सदैव उद्यम करता रहता है।
(8) सम्यग्दर्शन को धारण करें-आस्तिक्य भाव से युक्त, प्रभावना तथा प्रशंसा आदि से, गुरुभक्ति से युक्त बुद्धिमान श्रावक निर्मल सम्यग्दर्शन को धारण करता है।
(9) लोकसंज्ञा का त्याग करें-सुश्रावक लोक के गतानुगतिक गाड़रिये प्रवाह को जानकर लोकसंज्ञा का त्याग करता है और धीर होकर अच्छी तरह से समीक्षापूर्वक कार्य करता है।
(10) प्रागम का अनुसरण करें-जिनागम को छोड़कर परलोक के मार्ग में अन्य कोई प्रमाण नहीं है अतः वह आगम को आगे रखकर ही सभी क्रियाएँ करता है।
(11) यथाशक्ति धर्माराधना करें-बुद्धिमान श्रावक शक्ति को छिपाये बिना खुद को किसी प्रकार की बाधा न हो इस प्रकार दानादि चारों प्रकार के धर्म की आराधना करता है। जिससे वह बहुत या बहुत काल तक धर्म कर सकता है।
(12) मुग्धजन को शर्म न रखें-चिन्तामणि रत्न के समान दुर्लभ और हितकारी अनवद्य क्रिया को प्राप्त करके उसे अच्छी तरह से करते समय मुग्धजन हंसी-मजाक भी करें तो उससे लज्जा नहीं पाता है।
(13) राग-द्वेष छोड़कर रहें---देह की स्थिति में कारणभूत धन, स्वजन, पाहार, घर आदि संसारगत वस्तुओं में राग-द्वेष किये बिना रहे।
(14) मध्यस्थ रहें-जिसके विकार शान्त हो चुके हैं, ऐसा श्रावक राग-द्वेष से बाधित नहीं होता है, मध्यस्थ और हितेच्छु होकर सर्वथा झूठे आग्रह का त्याग करता है।
(15) धनादि में प्रतिबन्ध (राग) न करें-निरन्तर संसार की समस्त वस्तुओं की क्षणभंगुरता का विचार करने वाला श्रावक धनादि से जुड़ा होने पर भी उनमें राग भाव नहीं रखता है।
(16) अनिच्छा से काम-भोग में प्रवृत्त हों-संसार के भोग-उपभोग तृप्ति के हेतुभूत नहीं हैं, ऐसा जानने वाला एवं संसार से विरक्त मन वाला अन्य के आग्रह से ही काम-भोग में प्रवृत्त होता
(17) वेश्या की तरह गृहवास-पालन:-'पाज अथवा कल छोड़ दूंगा' इस प्रकार वेश्या की तरह निराशंस भाव वाला, शिथिल भाव वाला बनकर गृहवास को परकीय समझकर पालन करता है।
इन सत्रह गुणों से युक्त व्यक्ति को जिनागम में भावश्रावक कहा गया है। यही भावश्रावक शुभ कर्म के योग से शीघ्र ही भावसाधुता को प्राप्त करता है।