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श्राद्धविषि/१२
३. शुक्लपक्ष में प्रतिपदा से तीन-तीन दिन सूर्योदय के समय चन्द्रनाड़ी बहती हो और कृष्णपक्ष में सूर्यनाड़ी बहती हो तथा उस समय यदि वायुतत्त्व हो तो वह दिन शुभ समझो और इससे विपरीत हो तो वह दिन अशुभ समझना चाहिए।
४. वायुतत्त्व में चन्द्रनाड़ी बहती हो और सूर्योदय हो तथा सूर्यनाड़ी बहती हो और सूर्यास्त हो तथा सूर्यनाड़ी के समय सूर्योदय और चन्द्रनाड़ी के समय सूर्यास्त हो तो शुभ समझना चाहिए। . . कुछ प्राचार्यों के मत से वार के क्रम से सूर्य-चन्द्र का उदय माना है। उनके मत से रवि, मंगल, गुरु और शनि ये चार सूर्यनाड़ी के वार और सोम, बुध और शुक्र चन्द्रनाड़ी के वार हैं ।
• कुछ आचार्यों के मत से संक्रान्ति का भी अनुक्रम है। जैसे—मेष संक्रान्ति में सूर्यनाड़ी और वृष संक्रान्ति में चन्द्रनाड़ी-इस प्रकार अनुक्रम से बारह संक्रान्तियों में सूर्य-चन्द्रनाड़ी की गणना करनी चाहिए।
५. सूर्योदय के समय जो नाड़ी बहती है, वह ढाई घड़ी के बाद बदल जाती है। चन्द्र से सूर्य और सूर्य से चन्द्रइस प्रकार अरघट्ट-घटी के न्याय से दिन भर नाड़ी बदलती रहती है।
६. छत्तीस गुरु अक्षर के उच्चारण में जितना समय लगता है, उतना समय वायु को एक नाड़ी से दूसरी नाड़ी में जाने में लगता है। तत्त्वों का अवबोध
- पवन ऊपर चढ़ता हो तो अग्नितत्त्व, पवन नीचे जाता हो तो जलतत्त्व, पवन तिरछा बहता हो तो वायुतत्त्व, नासिका के दो पट में पवन बहता हो तो पृथ्वीतत्त्व और सर्व दिशाओं में पवन फैलता हो तो आकाशतत्त्व समझना चाहिए।
तत्त्वों का अनुक्रम
___ सूर्यनाड़ी और चन्द्रनाड़ी में क्रमशः वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी और आकाशतत्त्व निरन्तर रहते हैं। तत्त्वों को समय-मर्यादा
पृथ्वीतत्त्व पचास पल, जलतत्त्व चालीस पल, अग्नितत्त्व तीस पल, वायुतत्त्व बीस पल और आकाशतत्त्व दस पल के बाद बदलता रहता है। तत्त्वों में करने योग्य कार्य
पृथ्वी और जलतत्त्व में शान्ति-कार्य करने से फल की प्राप्ति होती है और अग्नि, वायु और आकाशतत्त्व में तीव्र और अस्थिर आदि कार्य करने से लाभ होता है।
तत्त्वों का फल
जीवन, जय, लाभ, वर्षा, धान्य-उत्पत्ति, पुत्रप्राप्ति, युद्ध, गमन, आगमन आदि के प्रश्न