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श्रावक जीवन-दर्शन / १७६ ताड़ना करनी चाहिए और पुत्र जब सोलह वर्ष का हो जाय तब मित्र की तरह उसके साथ आचरण करना चाहिए ।"
गुरु, देव, धर्म, सुखी तथा स्वजनों के साथ पुत्र का परिचय कराना चाहिए और उत्तम लोगों के साथ उसकी मैत्री करानी चाहिए । बाल्यकाल से ही पुत्र का गुर्वादि से परिचय कराया जाय तो वल्कलचीरी की तरह उसके अच्छे संस्कार ही रहते हैं ।
उत्तम जातिमान् के साथ मैत्री हो तो कदाचित् धन की प्राप्ति न हो परन्तु अनर्थ की परम्परा से तो अवश्य बच जाते हैं । अनार्यदेश में उत्पन्न हुए आर्द्रकुमार की अभयकुमार के साथ हुई मैत्री, उसके लिए उसी भव में मोक्ष प्रदान करने वाली सिद्ध हुई ।
उसे
पुत्र बड़ा हो तब समान कुल, जाति और रूप वाली कन्या के साथ लग्न करावें । गृहकार्य - भार में जोड़ें और क्रमशः उसे घर का कार्यभार सौंपे ।
मेल पति-पत्नी का संयोग गृहवास नहीं किन्तु विडम्बना ही है क्योंकि इससे परस्पर प्रेम के अभाव के कारण दोनों अनुचित्त प्रवृत्ति भी कर देते हैं
* कजोड़े का दृष्टान्त
भोज राजा के राज्य में धारानगरी में एक घर में अत्यन्त ही गुणहीन और कुरुप पुरुष था । उसकी स्त्री अत्यन्त ही गुणवती व रूपवती थी । दूसरे घर में इससे विपरीत पुरुष गुणवान और रूपवान था, जबकि उसकी स्त्री गुणहीन और कुरूप थी ।
एक बार चोर ने उन दोनों के घर में डाका डाला । उसने कजोड़ों को देखकर दोनों पुरुषों को स्त्रियाँ बदल दीं अर्थात् रूपवान पुरुष के पास रूपवती स्त्री और कुरूप पुरुष के पास कुरूप स्त्री रख दी ।
जिसको सुन्दर स्त्री मिली, वह खुश हो गया। दूसरे ने जब राजसभा में विवाद चलाया तब पटह को उद्घोषणा करने पर चोर ने कहा - "परद्रव्य का अपहरण करने वाले रात्रि के राजा ऐसे मैंने (चोर ने ) विधाता की भूल सुधारी है, मैंने रत्न को रत्न के साथ जोड़ा है।" हँसकर राजा ने उसकी बात को प्रमाणित कर दिया ।
विवाह के भेद आदि आगे बतायेंगे । पुत्र को घर का भार सौंपने से वह निरन्तर उसी की चिन्ता में व्यग्र रहने से स्वच्छन्दता और उन्माद से दूर रहता है और लक्ष्मी की प्राप्ति को कष्टसाध्य जानने के कारण वह निरर्थक, दुर्व्यय नहीं करता है ।
वड़े व्यक्तियों के द्वारा छोटे को गृहकार्य - भार सौंपने से उसकी प्रतिष्ठा बढ़ती है । पुत्रों की परीक्षा कर उसमें छोटा पुत्र योग्य हो तो छोटे पुत्र को भी कार्यभार सौंपना चाहिए। क्योंकि योग्य को कार्यभार सौंपने से ही परिवार का निर्वाह और शोभा बढ़ती है । जैसे— प्रसेनजित राजा ने अपने सौ पुत्रों की परीक्षा कर छोटे योग्य पुत्र श्रेणिक को राज्य प्रदान किया था ।
पुत्र की तरह पुत्री और भतीजे आदि के साथ भी योग्य, औचित्यपूर्ण व्यवहार करना चाहिए ।