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भादविधि/१७४
• माता-पिता की सेवा के विषय में अपने अंधे माता-पिता को कावड़ में बिठाकर तीर्थयात्रा कराने वाले श्रवणकुमार का दृष्टान्त सदैव लक्ष्य में रखना चाहिए।
• माता-पिता को धर्म में स्थिर करने के विषय में अपने पिता को दीक्षा प्रदान करने वाले आर्यरक्षित सूरिजी का तथा केवलज्ञान की प्राप्ति के बाद भी माता-पिता के प्रतिबोध तक निरवद्य वृत्ति से घर में रहे हुए कूर्मापुत्र का दृष्टान्त याद रखना चाहिए।
• अपने स्वामी को धर्म में स्थिर करने के विषय में जिनदास सेठ का दृष्टान्त समझना चाहिए। जिनदासवणिक् किसी मिथ्यात्वी सेठ के यहां नौकरी करता था। तत्पश्चात् वह समृद्ध बना और उसका सेठ एकदम गरीब हो गया। जिनदास ने अपने उपकारी सेठ को सम्पत्ति प्रदान कर पुनः समृद्ध बनाया और उसे श्रावकधर्म में स्थिर किया।
• अपने धर्मगुरु के उपकार की ऋणमुक्ति के विषय में निद्रादि प्रमादग्रस्त बने सेलकाचार्य को प्रतिबोध देने वाले पंथक शिष्य का दृष्टान्त समझना चाहिए।
卐 माता का प्रोचित्य ॥ पिता की अपेक्षा माता अधिक पूज्य होने से उसके प्रति अत्यन्त भक्ति होनी चाहिए। स्त्री का स्वभाव कोमल होता है। छोटी-छोटी बातों में भी उसे अपमान लग जाता है, अतः माता के मन को किसी प्रकार का माघात न लगे, सुपुत्र का इस प्रकार का वर्तन होना चाहिए।
मनु ने कहा है-"उपाध्याय से आचार्य दस गुणा श्रेष्ठ है, प्राचार्य से पिता सौ गुणा श्रेष्ठ है और पिता से माता हजार गुणा श्रेष्ठ है।" दूसरों ने भी कहा है-"स्तनपान तक पशु अपनी माता को मानते हैं, अधमपुरुष स्त्री की प्राप्ति तक माता को मानते हैं, मध्यमपुरुष गृहकार्य करती हो तब तक माता को मानते हैं और उत्तमपुरुष जीवनपर्यन्त तीर्थ की तरह माता को मानते हैं।"
पशुओं की माता अपने पुत्र के अस्तित्व को देखकर खुश होती है, मध्यम पुरुषों की माता पुत्रों की कमाई से खुश होती है, उत्तम पुरुषों की माता पुत्रों की शूरवीरता से प्रसन्न होती है और लोकोत्तम पुरुषों की माता पुत्रों के पवित्र चरित्र से प्रसन्न होती है।
9 भाई सम्बन्धी प्रौचित्य अपने भाई को अपने समान मानना चाहिए और छोटा भाई हो या बड़ा भाई हो उसे प्रत्येक कार्य में आगे करना चाहिए।
बड़े भाई को पिता तुल्य समझना चाहिए। सौतेले छोटे भाई लक्ष्मण ने अपने बड़े भाई राम के साथ जैसा व्यवहार किया था वैसा व्यवहार बड़े भाई के साथ करना चाहिए। इस प्रकार छोटे-बड़े भाई की स्त्री व उनके पुत्रों के साथ भी उचित व्यवहार करना चाहिए।
भाई के साथ भेद-भाव नहीं रखना चाहिए। उसे योग्य बात बताना तथा प्रसंग पर उसका अभिप्राय पूछना चाहिए। व्यापार में उसे इस प्रकार जोड़ें कि वह व्यापार में होशियार बने तथा