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श्रावक जीवन-दर्शन/१४५ सेठ जहाँ-तहाँ न्याय करने के लिए चला जाता था। सेठ की विधवा पुत्री जो अत्यन्त ही बुद्धिमती थी, बारंबार पिता को रोकती थी, परन्तु प्रतिष्ठा के लोभ में सेठ उसकी एक नहीं सुनता था। .
अपने पिता को बोध देने के लिए एक बार उसने झूठा झगड़ा पैदा किया। उसने पिता को कहा- "मुझे मेरे न्याय की दो हजार सोना मोहर दो, उसके बाद ही मैं भोजन करूंगी।"-इस प्रकार कहकर वह लंघन (भूख हड़ताल) करने लगी और पिता पर आक्षेप करने लगी कि वृद्ध होने पर भी मेरे धन का लोभ करते हैं।
लज्जित बने सेठ ने न्याय के लिए दूसरे लोगों को बुलाया-उन्होंने आकर सोचा-"यह पुत्री बालविधवा है, अतः इस पर दया रखनी चाहिए।"-इस प्रकार विचार कर उन्होंने पिता के पास से दो हजार सोना मोहरें पुत्री को दिलवा दीं।
___सेठ को लगा-"पुत्री ने मेरा धन भी ले लिया और लोक में मेरी निन्दा भी करा दी।" इस प्रकार सोचते हुए सेठ को अत्यन्त ही दुःख हुआ।
कुछ समय बाद पुत्री ने अपना सारा अभिप्राय पिता को समझाकर सब धन लौटा दिया, जिससे सेठ खुश हो गया और जहाँ-तहाँ न्याय करने का विचार छोड़ दिया। प्रतः न्याय करने वालों को भी जहाँ-तहाँ और जैसे-तैसे न्याय नहीं करना चाहिए।
* ईर्ष्या न करें * किसी के साथ ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए क्योंकि सम्पत्ति कर्म के प्राधीन है। इस लोक और परलोक दोनों में दुःख की कारणभूत ईर्ष्या क्यों करें?
ग्रन्थकार ने कहा भी है-"दूसरे के बारे में हम जैसा विचार करते हैं, वैसा ही हमें प्राप्त होता है। इस प्रकार जानकर दूसरे की समृद्धि में व्यर्थ ही मत्सर क्यों करें?"
धान्य के विक्रय में लाभ के लिए दुर्भिक्ष की, औषधि में लाभ के लिए रोगवृद्धि की और वस्त्र आदि में लाभ के लिए अग्नि आदि से वस्त्र आदि के क्षय की इच्छा न करें क्योंकि दुर्भिक्षादि जगत् को दुःखदायी होते हैं। कदाचित् दैवयोग से उस प्रकार की घटना बन जाय तो भी उसकी अनुमोदना न करें क्योंकि उस अनुमोदना से व्यर्थ मनोमालिन्य आदि दोष उत्पन्न होते हैं।
* मानसिक मलिनता पर दो मित्रों का दृष्टान्त * दो मित्र थे। उनमें से एक घी का व्यापारी था और दूसरा चमड़े का। वे दोनों घी और चमड़ा खरीदने के लिए जा रहे थे । मार्ग में किसी वृद्धा धाबे वाली के घर रसोई करा जीमने आये। भोजन के समय उस वृद्धा ने घी के व्यापारी को घर के अन्दर बिठाया और चमड़े के व्यापारी को घर के बाहर बिठाया।
लौटते समय वृद्धा ने चमड़े के व्यापारी को घर के भीतर और घी के व्यापारी को घर के बाहर बिठाया।
जब उन दोनों ने उसका कारण पूछा तो वृद्धा ने कहा-"जब तुम दोनों घी व चमड़ा