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श्राद्धविषि/१४२
जिसके गले में इन्द्रनीलमणि बँधा हुआ था। उसे उस मणि का ख्याल आने से उसने उसके अनेक टुकड़े किये और उन्हें लाख-लाख में बेच दिया।
आभड़ पूर्व की तरह समृद्ध हो गया। उसका सारा कुटुम्ब इकट्ठा हो गया। वह प्रतिदिन घी का एक घड़ा मुनियों को बहोराने लगा। प्रतिदिन सामिक वात्सल्य, सदाव्रत और महापूजा का आयोजन करने लगा।
प्रतिवर्ष दो बार चतुर्विध संघ की पूजा, अनेक पुस्तकों का आलेखन, चैत्यों का जीर्णोद्धार और नये बिम्बों का निर्माण आदि कराने लगा।
___ इस प्रकार चौरासी वर्ष की उम्र में एक बार जब आभड़ ने धर्मखाते का हिसाब मंगाया तो उसमें अट्ठाणु लाख भीमशाही द्रम्म के व्यय का हिसाब उसने सुना। अट्ठाणु लाख सुनकर आभड़ का मन खिन्न हो गया। वह बोला- "हाय ! मैं कितना कृपण! मैंने एक करोड़ द्रम्म का भी व्यय नहीं किया ?" उसी समय उसके पुत्रों ने 10 लाख द्रम्म धर्मकार्य में खर्च किये। इस प्रकार उसका व्यय कुल एक करोड़ और आठ लाख का हो गया। इसके ऊपर आठ लाख और मंजूर किये। अन्त में अनशन कर भाभड़ सेठ स्वर्ग में गया ।
प्रमापत्ति में धैर्य पूर्वभव के पापोदय के कारण कदाचित् पूर्वावस्था (समृद्धि) प्राप्त न हो तो भी धैर्य का आलम्बन लेना चाहिए, क्योंकि आपत्ति रूप सागर का पार पाने के लिए धैर्य ही नाव के समान है।
एक समान दिन तो किसके बीते हैं ? ठीक ही कहा है-सब दिन होत न एक समान । और भी कहा है
“यहाँ सदा के लिए सुखी कौन है ? किसकी लक्ष्मी स्थिर रही है ? किसका प्रेम स्थिर रहा है ? मृत्यु से कौन ग्रसित नहीं हुआ है ? विषयों में गृद्ध कौन नहीं है ?"
विषम स्थिति में सर्वसुख के मूलभूत सन्तोष का ही आलम्बन लेना चाहिए। अन्यथा व्यर्थ की चिन्ता से व्यक्ति इसलोक और परलोक उभयलोक से भ्रष्ट बनता है। कहा है
"प्राशा रूपी जल से भरी हुई चिन्ता नाम की नदी बहती है, हे मन्द तरने वाले ! तू उसमें डूबेगा इसलिए सन्तोष रूपी नाव का आश्रय ले।" ।
अनेक प्रकार के उपाय करने पर भी अपनी भाग्य दशा के कारण आर्थिक स्थिति नहीं सुधरती हो तो युक्तिपूर्वक किसी भाग्यशाली व्यक्ति का प्राश्रय लेना चाहिए। काष्ठ का आधार लेने से लोहा और पाषाण भी तैरने लगता है।
卐 हिस्सेदार के भाग्य से प्राप्त लाभ पर दृष्टान्त ॥ एक भाग्यशाली सेठ था। उसके यहाँ एक होशियार वणिक नौकरी करता था। सेठ के सान्निध्य से वह नौकर भी धनी हो गया और क्रम से वह पुनः निर्धन हो गया।