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श्रावक जीवन-दर्शन/१२९
के भेद-प्रभेद किये जाँय तो संख्या बहुत बड़ी हो जाये। ब्याज से रकम देना गिरवी रखना आदि भी व्यापार के अन्तर्गत ही आते हैं।
(2) औषध, रस, रसायन, अंजन, वास्तु, शकुन-निमित्त, सामुद्रिक, चूड़ामणि, धर्म, अर्थ, काम, ज्योतिष, तर्क आदि के भेद से अनेक प्रकार की विद्याएँ हैं। इसमें वैद्यविद्या और पंसारी (दवाई की दुकान) के व्यापार में दुध्यनि की सम्भावना होने से ये विशेष लाभकारी नहीं हैं। यद्यपि धनवान की बीमारी में वैद्य और पंसारी (दवाई वाले) को अधिक लाभ होता है और बहुमान प्रादि भी होता है। कहा है-"रोगी के लिए वैद्य पिता समान है।" कहीं लिखा भी है-रोगी के लिए वैद्य मित्र है। ऋद्धिमान् को चाटुकार (चापलूसी करने वाला) मित्र है, दुःख से पीड़ित को मुनि मित्र समान है और क्षीण सम्पत्ति वाले को ज्योतिषी मित्र समान है।
विक्रेयवस्तु में पंसारी की ही विक्रेयवस्तु प्रशंसनीय है। सोना-चांदी वगैरह से क्या लाभ ? पंसारी को विक्रेयवस्तु एक रुपये में ली हो तो कभी-कभी वह हजार में बेची जाती है।
फिर भी जिसको जिससे लाभ होता है, वह उसी की इच्छा करता है। कहा है
"सैनिक युद्ध चाहते हैं, वैद्य रोग से पीड़ित लोग चाहते हैं, ब्राह्मण बहुत से मरण की इच्छा करते हैं और निर्ग्रन्थ सुकाल चाहते हैं।"
धन पाने की इच्छा से जो वैद्य–'लोग बीमार पड़ें ऐसी इच्छा करता है, वह रोगियों को विरुद्ध औषध देकर उनके रोग को बढ़ावा भी दे सकता है क्योंकि ऐसे वैद्य में दया कहाँ से होगी?
कुछ वैद्य तो साधु, दरिद्र, अनाथ और मृत्यु शय्या पर पड़े लोगों से भी जबरन धन पाने की इच्छा करते हैं, अभक्ष्य औषधि आदि करवाते हैं और द्वारका नगरी के अभव्य वैद्य धन्वन्तरि की तरह विविध औषधियों आदि के कपट से लोगों को ठगते हैं। ऐसे वैद्य तो स्व-पर का नुकसान हो करते हैं।
जो वैद्य अच्छी प्रकृति (स्वभाव वाले) होते हैं, अल्प लोभी और परोपकारी होते हैं उनकी वैद्य-विद्या ऋषभदेव के जीवानन्द वैद्य की तरह उभय लोक के लिए हितकारी होती है।
(3) खेती तीन प्रकार से होती है-(1) वर्षा के जल से, (2) कुए के जल से, (3) वर्षा और कुए के जल से।
(4) गाय, भैंस, बकरी, ऊँट, बैल, घोड़ा, हाथी आदि के भेद से पशुपालन अनेक प्रकार का है।
कृषि और पशु-पालन विवेकीजन के लिए उचित नहीं है। कहा भी है-"हाथी के दाँतों पर राजा की लक्ष्मी, बैल के स्कन्ध पर पामरजनों की लक्ष्मी, तलवार की धार पर सैनिकों की लक्ष्मी और स्तन पर वेश्याओं की लक्ष्मी रही हुई है।"
यदि अन्य कोई उपाय न हो और खेती करनी पड़े तो अनाज बोने के समय आदि का ध्यान रखना चाहिए और पशुपालन करना पड़े तो मन में बहुत दया रखनी चाहिए। कहा भी है-"जो किसान बोने के समय को अच्छी तरह से जानता है, खेती के योग्य भूमि को बराबर पहिचानता है