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श्राढविधि/११८
• कषाय प्रादि दोषों का उपशमन होता है। • विनय आदि गुणों की प्राप्ति होती है । • कुसंगति का त्याग होता है। • सत्संग की प्राप्ति होती है। • संसार के प्रति वैराग्य उत्पन्न होता है। • मोक्ष की इच्छा पैदा होती है।
• सम्यग् देश विरति और सर्व विरति धर्म की प्राप्ति होती है। . • सम्पूर्ण रीति से स्वीकृत देशविरति और सर्वविरति धर्म की एकाग्र मन से प्राराधना
होती है। . नास्तिक प्रदेशी राजा, आम राजा, कुमारपाल और थावच्चापुत्र आदि के दृष्टान्तों से भी धर्म देशना-श्रवण का लाभ ख्याल में आ जाता है। कहा भी है
"जिनवाणी के श्रवण से मोह का नाश होता है। कुपथ का उच्छेद होता है। मोक्ष की इच्छा दृढ़ बनती है। उपशम फैलता है। वैराग्य और आनन्द की वृद्धि होती है। सच पूछा जाय तो जिनेश्वर की वाणी से क्या नहीं मिलता है ? अर्थात् सब कुछ प्राप्त होता है।" - "शरीर क्षणभंगुर है, बान्धव बन्धन समान हैं, लक्ष्मी विविध अनर्थों को पैदा करने वाली है। अतः जिनवाणी से उत्पन्न संवेग आदि मनुष्य पर कौनसा उपकार नहीं करते हैं !" ...
+ प्रदेशी राजा का दृष्टान्त ॥ श्वेताम्बी नगरी में प्रदेशी नाम का राजा था और उसके चित्र नाम का मंत्री था। श्रावस्तीनगरी में चार ज्ञान के धारक केशी गणधर के पास चित्र ने श्रावक धर्म स्वीकार किया था। चित्र मंत्री के प्राग्रह से केशी गणधर श्वेताम्बी नगरी में पधारे।
___ चित्र मंत्री एक दिन प्रदेशी राजा को घोड़े पर बिठाकर घूमने के बहाने केशी गणधर के पास ले गया। ... गर्व से राजा ने केशी गणधर को कहा--"हे महर्षि ! आप व्यर्थ ही कष्ट मत उठायो । क्योंकि जगत् में धर्म आदि नहीं है। मेरी माता श्राविका थी और पिता नास्तिक थे। मरते समय मैंने उनको.प्राग्रहपूर्वक कहा था, "मृत्यु के बाद स्वर्ग में सुख अथवा नरक में दुःख हो तो मुझे कहना।" परन्तु मृत्यु के बाद न तो माता ने स्वर्ग के सुख की बात मुझे कही और न ही पिता ने नरक के दुःख की बात मुझे कही। इतना ही नहीं मैंने एक चोर के टुकड़े-टुकड़े कर दिये, परन्तु मुझे कहीं भी जीव दिखाई नहीं दिया। मैंने जीवित और मृत व्यक्ति को तौला परन्तु उनके वजन में कुछ भी परिवर्तन दिखायी नहीं दिया। मैंने एक पुरुष को छिद्र रहित कोठी में बन्द कर दिया और उसके ऊपर मजबूत ढक्कन लगा दिया। वह व्यक्ति अन्दर मर गया। उसके शरीर में मैंने असंख्य कीड़े देखे। उस कोठी में उस मनुष्य के जीव को बाहर आने और कीड़ों के अन्दर प्रवेश करने का लेश भी मार्ग नहीं था। इस प्रकार अनेक परीक्षाओं के बाद मैं नास्तिक बना हूँ।" .