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________________ बाढविषि/१४ (47) मन्दिर में सोना, मोहर आदि (48) मन्दिर में विधिपूर्वक निसीहि न की परीक्षा करना। कहना। (49) मन्दिर में छत्र धारण करना। (50) मन्दिर में जूते पहनकर जाना। (छत्र को बाहर रखना चाहिए।) (51) मन्दिर में शस्त्र आदि ले जाना। (52) अपने बीजने के चामर को मन्दिर के बाहर न रखना। (53) मन्दिर में मन को एकाग्र न करना। (54) मन्दिर में तेल से मालिश करना-कराना। (55) अपने उपयोगी सचित्त फूल प्रादि (56) मन्दिर में प्रवेश करते समय प्रचित्त मन्दिर के बाहर न छोड़ना। सोने आदि के हार-अंगूठी प्रादि को मन्दिर के बाहर छोड़ना। इस प्रकार करने से लोक में निन्दा होती है कि यह कैसा धर्म है-अच्छे प्राभूषणों को छोड़कर मन्दिर में जाते हैं ? (57) प्रभु-प्रतिमा को देखकर भी (58) उत्तरासंग किये बिना मन्दिर में जाना । हाथ नहीं जोड़ना। (59) मन्दिर में मस्तक पर मुकट धारण (60) मस्तक की पगड़ी पर विशेष शोभा हेतु करना। पेच लगाना। (61) मस्तक की पगड़ी पर फूल आदि (62) कबूतर, नारियल आदि सम्बन्धी होड़ की कलंगी लगाना। लगाना। .. (63) मन्दिर में गेंद या गिल्ली-डंडा (64) मन्दिर में सांसारिक सगे-सम्बन्धी को खेलना। जुहार करना। (65) मन्दिर में काँख को बजाने प्रादि (66) मन्दिर में किसी को तिरस्कारपूर्ण भांड की विविध चेष्टाएँ करना। भाषा बोलना। (67) मन्दिर में किसी देनदार को (68) मन्दिर में युद्ध करना। पकड़ना। · (69) मन्दिर में बालों की गुत्थियों (70) मन्दिर में - पलाठी लगाकर बैठना । को सुलझाना। (71) मन्दिर में पैरों के रक्षण हेतु (72) मन्दिर में पैर लम्बे कर बैठना। लकड़ी की पादुका पहनना। (73) मन्दिर में सीटी बजाना। (74) मन्दिर में अपने पैर आदि धोकर कीचड़ करना। - वीरासन (परिभाषा हेतु देखिए मध्यम 40 माशातनामों में से सं. 13)
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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