SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (94) दुधृ मिि त्वा मातृकामा किती भारती प्रभवति प्रायस ऐसो यथा। यात्रियोपता (ग्रंथ पराधिने ि • न्यपि ग्रंथासुतानां नरः र त्वाँ मुकामय सर्व तर र भूषएगी शुक्लाम्बरांके इम्बरो गौरी गौरि सुधां तरंग पवलामालोकया नृत्यकजेवीला पुस्तक रुका सवलम, चेताम्बज बलात्करोति स्यात्कः स्फुटवृत्त "चातुर्य चिंतामसिंग के इत्यादयः । वश्यादौ तु भारती रक्तमिच वङ्गच्य पुर्वी दृष्ट्रा घायन्ते । यटुक्त, ये सिन्दूर परा नूरविचापि विलिनया कान्तात गल -2 यूष हितां तत्तेजसाद्यामिवां यविकरस प्रस्तारमग्रामिव पश्यन्ति सए मध्य नव्य गणसस्ते लोग बैंको कुरंग दारकहशो वश्या मनति ध्रुवमिं इति ए प्राचीन पाणिरहित स्खलित कियद्भिः, सारस्वतं कलर्पित कुसुमयुता एलैः । संशोधित निर्वापयाम दिन स, सुधियांशिवाय श्रीकृष्णदेव विदुषा
SR No.032031
Book TitleSarasvatina Bhinna Bhinna Swarupo
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages124
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy