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________________ १७) त्रेधा स्वरूपं जगदुपकृतये लीलया येति हैमा ज्योति स्वांउक सूत्रां गदधरमरुण स्वप्रभाकू त्रिलोकां दोर्टडांच जरेंद्र त्रिनयन नृकपालालिबंधूकरज्य । द्वा सः प्रेतासने श्री वा बिजनिकरं सास्तुदेवी श्रिये वः ॥४८५ हंसाख्याना त्रिनारी त्रिभुवनगमना रूढ चक्रा सचक्रा। तारा वाराहि देवी परपवनमयी पंचरूपा सुरुषा ॥ रुपातीत्याद्यरूपा निरुपम सुरमा दत्त देव प्रभावा। ब्रह्मोउं पालयंती त्यतनुतनुत्या सारदा स्तान्मुदे वः ॥ पूणा . या संज्ञानां सहस्रं शुचि पशुपतिना स्कंद मुद्दिश्यदिष्टं । सारं सर्व श्रुतीनां परपुरुषमये भूषयंती स्वर्षा मूर्ति दामोदरी या सुरभुजगनृणां सर्वदा संभृताशा । देवी सा वाश्विभाति त्रिजगति भवतो भूरि भूरि प्रदास्तात् ॥५१॥ (ति) 3
SR No.032031
Book TitleSarasvatina Bhinna Bhinna Swarupo
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages124
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size16 MB
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