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[१३] रही हुई और चंद्रमाकी लेखाके अमृतसे सिंचित, महा प्रभावसम्पन्न, कर्मरूप बनको जला डालने में अग्निके समान, ऐसा यह महातत्त्व, महा बीज, महा मंत्र और महान् पद स्वरूप तथा शरत्कालके चंद्रमाके समान गौर वरण धारण करनेवाले, ॐकारका ध्यान कुंभक प्राणयामके द्वारा करना चाहिये।
ॐके चिंतनसे फल प्राप्ति । सान्द्रसिदुरवर्णान्तं यदि वा विद्रुमपत्रम् । चिन्त्यमानं जगत्सर्वं क्षोभयसर्भिसंगतम् ॥ जाम्बूनदनिभं स्तम्भे विद्वेषे कज्जलविषम् ।
ध्येयं वश्यादिके रक्तं चंद्रायं कर्मशातने ॥ अर्थ-इस प्रणवाक्षरका गाढे सेंदुरके रंग जैसे रूपमें अथवा मुंगके जैसे स्वरूपमें ध्यान करनेसे समूचे संसारको शामिल किया जा सकता है । स्वर्णके समान पीले स्वरूपमें ध्यान करनेसे चाहे जिसे स्तंभित किया जासकता है । काजल जैसे श्याम (काले) स्वरूपमें ध्यान करनेसे चाहे जिसे व चाहे जैसे शत्रुका नाश किया जासकता है। लाल वर्णमें ध्यान करनेसे चाहे जिसे वशीभूत किया जा सकता है। चंद्रमाके जैसे शुक्ल स्वरूपमें ध्यान करनेसे चाहे जैसे दुष्ट कर्मोका नाश किया जा सकता है ।
ॐका स्वरूप । जैन मंत्रवेत्ता महात्मा पुरुषोंक मतानुसार इस महान् मंत्रके " अ अ आ उ म्" इन पंच अद्याक्षरोंके संयोजनसे इस ॐ प्रणवाक्षरका स्वरूप बना है। अतएव इस मंत्रपदका जप ध्यान करनेसे नमस्कार महा मंत्रका जप करने जितना ही फल प्राप्त होता है।