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संसार परिवर्तनशील है । आज हमारे इस भारतवर्षमेंसे तपश्चर्या, त्याग और तेजकी त्रिविध शक्ति धारणा करनेवाले आध्यात्मिक पुरुष बहुधा अद्रश्य होगए हैं । अतएव हम लोगों को इस अध्यात्मिक सामर्थ्य की कल्पना तक होना असंभव होगया है । दूसरी ओर देखते दिखाई पड़ता है कि तप और त्यागके मिथ्या आडम्बर के नामपर केवल उदर पूर्ति - की अभिलाशा रखनेवाले दंभी लोगोंके दांभिक जीवनको देख देखकर मुमुक्षुजनोंमें, सज्जनों सत्पुरुषों की सामर्थ्य में अश्रद्धा उत्पन्न होरही है । अतएव ऐसे अनेक साधनों की यथोचित आराधना करनेकी और किसीकी प्रवृत्ति या प्रयत्न नहीं होरहे हैं । कहा जाता है कि जिस प्रकार धर्म बुद्धिका विषय नहीं है पर श्रद्धाका विषय है । इसी प्रकार मंत्र सामर्थ्य भी बुद्धिका विषय नहीं है परन्तु वह श्रद्धाका विषय । श्रद्धाशील आत्मा ( मनुष्य ) ही मंत्रजनित सामर्थ्यका फल प्राप्त कर सकती है । मंत्रोंसे श्रद्धाहीन मनुष्य को उससे कोई लाभ नहीं हो सकता आध्यात्मिक सामर्थ्य की प्राप्तिके लिये संयम और श्रद्धा इन उभय तत्वों की जोड़ी चाहिये । श्रद्धा, सामर्थ्य - शक्तिकी जननी है योग्य समागमसे आत्मिक सामर्थ्य उत्पन्न होजाता है । इस और उसकी सामर्थ्य का विचार करते हैं तो समझ में आता है कि उन मंत्रपदोंका योजक संयमशील होना चाहिये । और उसका ग्राहक भी श्रद्धावान् होना चाहिये । संयमशून्य के द्वारा योजित और श्रद्धा शून्य द्वारा महीत मंत्र कुछ भी सामर्थ्य उत्पन्न नहीं कर सकता, यह सर्वथा सब प्रकार सही है । हमारे पूर्वके प्राचीन पवित्र परोपकारी पुण्यवान् पुरुष, महामना महर्षि लोग, मुमुक्षुजनोंके हितार्थ कितनेक मंत्रपदोकी योजना कर गए हैं 1 उनमें संयमका ओजस् तो अन्तर्निहित है ही । परन्तु यदि साधक जनों में श्रद्धाकी पात्रता यथेष्ट न हो तो इच्छित फलकी प्राप्ति हो ही नहीं सकती । कहा भी है कि
। श्रद्धा और संयम, दोनों सिद्धान्त के अनुसार मंत्र पद
श्रद्धा फलति सर्वत्र ।
( सर्वत्र श्रद्धा ही फलिभूत होती है ) ॐ क्या हैं ?
मंत्र शास्त्रोंमें ॐकारको प्रणव कहा जाता है सबके सब मंत्र पदों में यह ॐ आद्यपद है । सभी वर्णों का यह आद्यजनक है इसका स्वरूप अनादि व अनन्त गुणोंसे युक्त है । शब्दसृष्टिका यह मूल बीज है । ज्ञानरूप उज्वल धवल ज्योतिका यह केन्द्र है । अनाहत वादका यह प्रतिघोष है । परब्रह्मका द्योतक और परमेष्ठीका वाचक है । सभी दर्शनों में और सभी तंत्रों में यह समान भावसे व्यापक हैं । योगीजनों का यह आराध्य अधिष्ठान है, काम उपासकों को यह अभिलाषित इच्छित फल देता है और निष्काम उपासकों को आध्या