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माधव राज्ये । खाफ बजारमें गाजे । सद्गुरु पूजा प्रेम कीनी । शुभकरण कहे आज ॥ सु० ॥ १० ॥
इति सुगुरुमहाराज दादाजी रत्नप्रभसूरि आदि गुरुवरोंकी वृहत्पूजा शुभकर्णयतिकृता संपूर्णा ॥
आरति.
जय गुरु हितकारा । आरति मंगलचारा । सब जन सुखकारा ॥ प्रथम आरति रत्नप्रकी । धर्मधुरंधर धीरा। शासन नायक जग गुरु स्वामी । शिव रमणी वरवीरा ॥ जय० ॥ १ ॥ द्वितीय आरति यक्षगुरुकी । ढाले संकट रोगा । निर्धनीयांकुं भूप करत है । आप अविचल भोगा ॥ जय० ॥ २ ॥ तृतीय आरति देवगुरुकी । वन्ध्या पुत्रको पामे । कारज सारे जगके स्वामी । मनवांछित हो काम || जय० ॥ ३ ॥ तूर्य आरति सिद्धगुरुकी । जावै कुमति मोहा । ध्यान करंता सुमति आवे | लोहा कंचन होवे ॥ जय० ॥ ४ ॥ पंचमी आरत कक्क गुरुकी । कर्म हटावे सारा । आवागमनसें दूर करत है । ऐसे सद्गुरु म्हारा ॥ जय० ॥ ५ ॥ करण कहै शुभ सद्गुरु पदको । नित न कर जोडा । भव भव व्याधि मेटो हमारी । आपो अनुभव तोरा ॥ जय० ॥ ६॥
|| पंच पाटकी आरति संपूर्णा ॥ आरति.
जय जय आरति सुगुरु तुमारी । तोरा चरन कमल जाउं बलिहारी । महेन्द्र चूड - लक्ष्मीवती जन्दा । वदन कमल मुख पूनमचन्दा ॥ जय ० ० ॥ १ ॥ सात हाथ तनु सोवन काया । ले दीक्षा गुरु धर्म दीपाया | जय || २ || तुम गुण पुरन तुम गुण हंसा | विद्याधर कुल