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अथ अष्टमफलपूजाप्रारम्भः
दूहा. फल ढोके पातिकगले । नूतन मिष्ट अनूप पग पग पामें संपदा । निर्धनियां धनरूप ॥ १ ॥
ढाल आठवीं. __ श्री रागेण गोयते
गुरुपदपूजा सुरतरु कन्द । धन धन सद्गुरु अतिशय धारी । तेज प्रताप अखंड ॥ गु० ॥१॥ दोय पुरवधर पेंतिस पाटे। विद्या गुण निधि बन्ध । गु० ॥२॥ दैव ऋद्धि गणि इनकने पढिया। डेढ पूरव श्रुति छन्द ॥ गु० ॥३॥ क्षमाश्रमण पद सद्गुरु दीना । विद्या वकसी गुप्त प्रबन्ध । गु० ॥४॥ आप तखत जिस दिवस विराज्या । थाप्या पाठक पंच ॥ गु० ॥ ५॥ बहुत उपद्रव रोग निवार्या । कहेतां न आवे खंच ॥ गु०॥ ६ ॥ भुवन शंखेश्वर ध्यान करंता । भाखे पद्मावती वंच ॥ गु०॥७॥ संघ उद्योत कीया जब गुरुने । हटिया कुमति कुपन्ध । गु०॥८॥ बहुत मिथ्यात्वी मिथ्या तजके । समकित लीना नन्द ॥ गु० ॥९॥ भैसा साहका कष्ट मि. टाया। भाज्या दलिद्र अखंड॥ गु० ॥१०॥ विषापहार लब्धिका धारी । पाटवान नभतेज अखंड ॥ गु०॥११॥ सुगुरु मेहरसे भेसा साने । कीना नाम