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विनाश । ए आंकडी । कोरंट श्रावक सबमिल आवे । विनति करै समुदाया हो ॥ भव० ॥१॥ भुवन रच्यो वहां चरमजिनंदको। चलिय तहां गुरुराया हो ॥ भव० ॥२॥ ये सुन सद्गुरु तब यु भाखै । वक्तपे आवे उंमाया हो ॥ भव०॥३॥ मूलरूपरख निज ओएस्यां। कोरंटवैक्री सुंधाया हो।भव०॥४॥ एकसम गुरु दोय भुवनमें। बिंबप्रतिष्ट कराया हो ॥ नव०॥५॥ ये देख अचरिज बहुत मिथ्यात्वी । शिष्य भये समुदाया हो । भव०॥६॥ देवी चांमुडासमकितकीनी।महिष-अजा छुडवाया हो ॥ भव० ॥७॥ छाणा उपर वासक्षेपसें । धन अगनित दरसाया हो ॥ भव०॥८॥ भूप करन गुरु इच्छा कीनी । देवी कहै हरखाया हो ॥भव० ॥९॥ वाणिक करो गुरुगोत्रअढारे । साख बढे बहु ताया हो ॥ भव० ॥१०॥ ग्राम-नगर-पुर-पाटन विचरे । जहां तहां संघ बनाया हो ॥ भव० ॥११॥ याग हिंसादिक दूर कराके। श्रावक व्रत उचराया हो॥भब० ॥ १२ ॥ जैन मीमांसा कुमति विध्वंसन । नवतत्व वृत्ति रचाया हो ॥ भव०॥ १३ ॥ बहुत देशकी कुमति हठाके । जैनधर्म झलकाया हो ॥ भव०॥ १४ ॥ संघ चतुरविध स्थापित करके। श्रीसंघ पद दरसाया हो। भव०॥ १५ ॥