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की रकमको अपने यहाँ जमा रखते हैं वे साधु-साध्वियों के व्रतभंग के दोष के भागीदार तो होते ही हैं, साथ ही साथ वे स्वयं भी दोषपात्र बन जाते हैं, और अपने ही हाथों से अपने धर्म की अवहेलनाका निमित्त बनते हैं। इस लिए सभी श्रावकबन्धुओं ने इस प्रकारकी अधर्मकी भागीदारी से शीघ्र ही अलग हो जाना चाहिये। इस पर भी जो व्यक्ति ऐसा अनुचित सहयोग देना जारी रखें वैसे व्यक्तिओं के
नाम प्रकाश में लाये जाय। (उ) ज्ञानभंडारों को श्रमणसमुदायमें से किसी एक व्यक्ति की
मालिकी के नहीं बल्कि श्रीसंघ के अधिकार में रखे ___ जाय; और योग्य व्यक्ति उसका उपयोग सरलता से कर
सके ऐसी व्यवस्था की जाय। (ऋ) किसी भी आचार्य महाराज या मुनिराज के तत्त्वावधान में
किये जानेवाले उपधान, उद्यापन या अन्य किसी भी प्रकार के धार्मिक उत्सवों पर देव द्रव्य में अथवा अन्य किसी भी खाते में जो कुछ आमदनी हो उसका व्यय, वह आमदनी सम्बन्धित ट्रस्ट की या व्यवस्थापक समिति की है ऐसा मान कर, उस ट्रस्ट या व्यवस्थापक समिति द्वारा ही किया जाय ।