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मे नहीं है कि ३२ सुत्रांसे न मीले परन्तु उनिकी गंभीर शेलीको पीछाणा और अंतरंगत रेस्व को समजना ए बहुतही मुसीकल है.
परन्तु समयक ज्ञान शुन्य मुर्ती उत्थापक केवल अज्ञान के मारा अपणा मीथ्या कदापाके वसीभुत है के पुर्व धारी आचार्य के वचनको ____उत्थापन कर्ते है उनिसे हम ईसी स्तवन द्वारे प्रश्न पुछते है कि जो तुम ३२ सूत्र मूल पाठ मानते है तो ३२ सुत्रांमे एसे एसे बोल है कि वीगर पांचागी समाधान नहीं होता है हमारे तो पुर्व आचार्य ईनी बोलाका पांचागी द्वारे समाधान कर गया है. __अब जो पांचागी नही माननेवाला से हमारा केहना है की ३२ सुत्रांका प्रश्न ३२ सुत्रांका मूल पाठसे समाधान कर छापा द्वारे प्रगट करे नही तो अब आपका ३२ सुत्र ही मानने का कृतब्बी रंग चल. णका नहीं है।
प्रिय आप लोक पांचांगी आदि प्रकरणसे ही आपकी आजीवका चलाते हो और उनि पांचांगीको नही मानणा ए क्या कृतघ्नीपणा नहीं है तो क्या हे स्वं विचार कर लेणा हम आपके हितार्थी शीषसा देत है कि आप आपकी आत्म कल्याण करणा चाहते होते जैन आगम पांचांगी संयुक्त प्रमण कोरे अस्तु. ___ हमारे ढुंढीय और तेरापंथी भाइ ऐसा न करे कि हम जो ३२ सुत्रांका मूल पाठसे प्रश्न पूछा है जीसीका उत्तर अङ्ग बङ्गसे दे देवे हम मूल सूत्र से लेणा चाहते है वो मुल ३२ सुत्रांसे ही देवे जो मुल सुत्र से उत्तर नहीं देवेगा तो ऑम तोरसे जाहर होजावेगा कि जैन आगम की छोडके केवल ३२ सुत्र मानणा ए ऐक भद्रीक जीवांके लीए जाल रचा है परन्तु अब आपकी ढोल जीतनी पोल वीद्वतासे छीपी हुई नही है इतनाही केहके प्रस्तावना समाप्त करता हूं. श्रीरस्तु । लेखक.