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(१०) टबो माने टीका नहि माने, वे डबे डुबावण हारजी॥॥१०॥ भद्रबाहु स्वामी कृत्ति कीनी, ते बहु कठण जाणजी। तेनी सुगम करी आचारज, ते दृषि परमाणजी ॥7॥१०२॥ वादी कहे वातो पंचागी, गइ कालमें वीतजी । नवी रची आचारज ज्यारी, कीम आवे प्रतीतजी ॥४॥१०३॥ सुत्र रह्या " नियुक्ति" वोती, तेहना सुपरमाणजी। आचारज रच्या नहि मानो, आगो सुणजो वाणजी।मु।१०४। तीन छेद भद्रबाहु रच्या, पन्नवणा श्यमाचारजी। देवठ्ठी गणीजी नंदी बणाइ, दश विकालीक सज्जभव गण
धारजी ।।मु॥१०५॥ धर्म धुरंधर पुर्व धारी, टीका करतां जाणजी। काम पडे जद बोल चालको, सरणां लेवो आणजी मू।१०६। जैनी नाम धरावे फोगट, जिन आगमथी दुरजी। तेहिज भाची पंडत भाजो, कृतघ्नीने क्रुरजी ॥॥१०७॥ मुल सहीत पंचागी मानो, दो बहु आदर मानजी । स्याद्वादकी शैली समाजो लो गुरु गमशे ज्ञानी ।।१०८॥
॥ कलस ॥ नाभि रायकुल वंसभुसण, मारुदेवा मायनी । " अष्टापद" पर आप सिध्या, गयवर प्रणमे पायजी ।। एकादशी अषाढ सुकल, उगणीश बहुत्तर सालजी। देस मरुधर गांव तिवरी, प्रभु जोडी प्रश्नमालजी ॥१॥
॥ इति श्री प्रश्नमाला संपूर्ण ॥ इन प्रश्नोका ऊत्तर ३२ सुत्र मानणेवाला (ढुंढीया या तेरापन्थी) दोनु एक मासके अंदर प्रगट करे ताके आपके अंध सरद्धालु मत पक्षीयां के मीथ्यात्वका नसा फोरन् उत्तर के ४ समक्ति रत्नकी प्राप्ति हो अस्तु.