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*॥ सातवाँ परिच्छेद ॥ όφφφφφφφφφφφέ
अठारा नाते.
एक बूकुमार' बोला-हे प्रभव ! संसारमें ऐसा प्राणी कोई
भी नहीं जिसके साथ कभी संबंध न हुआ हो 'कुबेरर दत्त के समान सर्व जीव कर्मरूप रज्जुसे बँधे हुवे हैं।
'मथुरानगरी' में कामदेवकी सेनाके समान 'कुवेरसेना' नामकी एक वेश्या रहती थी, उस वेश्याको पहलाही गर्भ हुआ था । एक दिन उस गर्भकी वेदनासे उस वेश्याको अत्यन्त पीड़ा होने लगी अत एव शीघ्रही डाक्टर-वैद्य बुलवाये गये, उन डाक्टरोंने उस वेश्याके पेटको देखकर कहा कि इसे किसीभी प्रकारका रोग नहीं है परन्तु इसके उदरमें युग्म पैदा हुआ है जबतक इस युग्मका जन्म न होगा तबतक किसीभी प्रकारसे इसकी पीड़ा दूर नहीं होसकती । यह सुनकर उसकी माता कहने लगी कि बेटी ! इस गर्भसे तुझे दुःसह कष्ट भोगना पड़ेगा अत एव इस गर्भको गिरा देना ठीक है जिससे तुझे कष्ट न सहन करना पड़े और ऐसे गर्भसे अपनेको प्राप्ति भी क्या ? जिससे दुःख सहना पड़े और रूप-लावण्यकी हानि हो । यह सुन वेश्या बोली माता! मैं दुःसह्य वेदनायें भी सहन करके गर्भकी रक्षा करूँगी