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परिशिष्ट पर्व. पाचा गृहमें प्रवेश कर गया। वहांपर उन आठोंही कुमारियोंके साथ एक मखमलके आसनपर बैठकर विवाह कौतुकको देखता रहा । फेरे फिरनेका मुहूर्त आनेपर 'जंबूकुमार' को चौरीमें बुलाया गया और विधिपूर्वक फेरे फिरने लगे, इस समय वहांका दृश्य कुछ औरही मालूम पड़ता था कहीं स्त्रियां मंगल गीत गारही हैं कहीं मनोहर बाजोंकी आवाज कानोंमें पड़ती है और कहीं विवाहविधि करानेवाले पण्डितोंके मुखसे मंत्रध्वनि निकल रही है, इस प्रकारके आनन्दको देखकर 'धारिणी' और 'ऋषभदत्त' के हृदयमें असीम हर्ष बढ़ रहाथा परन्तु उस वक्त 'जंबूकुमार' कुछ औरही ध्यानमें मग्न होरहाथा । इस प्रकार विवाह समाप्त होनेपर 'जंबूकमार' को 'करमोचन' में सुसरपक्षसे इतना द्रव्य मिला कि सब इकट्ठा करनेपर एक छोटासा पर्वत वन जाय । तत्पश्चात् आठोंही वधुओंके साथ गाजेबाजेसे 'जंबूकुमार' अपने घर आगया। घर आकर सपरिवार जंबूकुमार प्रथम जिनेश्वर देवके मन्दिरमें नमस्कार करनेको गया पश्चात् कुलदेवताओंको नमस्कार किया । 'ऋषभदत्त' और 'धारिणी' ने बड़े आडम्बरसे जंबूद्वीपके अधिष्टाद देवका पूजन किया।