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परिच्छेद.] जंबूकुमारका विवाहोत्सव-ब्रह्मचर्यका नियम.. ५७ नाम १ 'नभासेना' २ 'कनकश्री' ३ 'कनकवती' तथा ४ 'जयश्री' था। जब इन साहूकारोंकी ये कन्यायें योवन अवस्थाको प्राप्त हुई तब उन लड़कियोंके विवाहके लिए वरकी तालाइस कराई, परन्तु 'जंबूकुमार' के सदृशरूपलावण्यसंपन्नगुणवान अन्य वर देखने में न आया । इस लिए उन आठोंही साहूकारोंने मिलकर 'जंबूकुमार' के पिताके पास जाकर बड़ी नम्रतासे यह प्रार्थना की कि हे श्रेष्ठिन् ! रूपलावण्यको धारण करनेमें अप्सराओंके समान हमारे आठ कन्यायें हैं वे अब पानीग्रहण करनेके योग्य हुई हैं परन्तु उन आठोंही कन्याओंके योग्यरूप लावण्य गुणसंपन्न वर तुमारे पुत्रके सिवाय अन्य वर नहीं देख पड़ता, क्योंकि दुनियां में कुल, शील, रूप, वय, ऐश्वर्यादि गुणोंसे संपन्न वर बड़े पुन्यके प्रभावसे मिलता है । तुमारा पुत्र सर्वगुणसंपन्न है अत एव हम आपसे याचना करते हैं कि आपके पसायसे यह 'जंबूकुमार' हमारी कन्याओंका वर हो और हम आशा रखते हैं कि आप बड़े सुकुलीन और दक्ष हैं इस लिए विवाह संबंध करके आप हमें सर्वथा अनुग्रहित करेंगे । 'ऋषभदत्त' स्वयं अपने पुत्रके लिए योग्य कन्याओंकी तालाइसमें था अत एव 'ऋपभदत्त' ने उन साहूकारोंकी प्रार्थना सहर्ष स्वीकार कर ली । इधर उन कन्याओंको भी मालूम हुआ कि हमारे पिताओंने हमें 'जंबूकुमार' के प्रति दे दिया है अत एव बड़ी खुशी होकर अपनी आत्माको धन्य मानने लगीं। इधर उन जीवोंके पुन्य योगसे राजगृह नगरके बाह्योद्यानमें गणधरभगवान श्री सुधर्मा' खामी आकर समवसरे । भगवान 'सुधर्मा' स्वामीका आगमन सुनकर अल्पकर्मी 'जंबूकुमार' मारे हर्षके फनसके फलके समान रोमांचित होगया और गणधरभगवानको वन्दन करनेके लिए