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परिशिष्ट पर्व.
[चौपा
अनारकी कलियें खिली हुई हैं, कहीं चंपाचंबेलीके पुष्प लहलहा रहे हैं, शरीरको आनन्द देनेवाला कहीं शीतल वायु चलता है, कहीं अनेक प्रकारके पुष्पोंकी सुगंधमहक रही है । इस प्रकार आनन्दमय दृश्यको देखते हुए वे दोनों वैभारगिरि पर्वत पर फिर रहेथे, इतनेमेंही 'ऋषभदत्त' ने देवकुमारके समान रूपवाले ' यशोमित्र' नामा एक सिद्धपुत्र को देखा और उसके साथ वार्तालापभी किया, 'ऋषभदत्त' 'यशोमित्र' सिद्धपुत्रको अपना स्वम जान कर बोला कि हे भाई! आप कहां जाना चाहते हैं ? 'यशोमित्र' सिद्धपुत्र बोला कि भाई आपको मालूम नहीं ? इस उद्यानमें परम पवित्र श्री महावीरस्वामी के शिष्य गणधर भगवान श्री ' सुधर्मा' स्वामी समवसरे हैं, मैं उन्हें वन्दन करनेके लिए जा रहा हूँ, यदि आपकी इच्छा है तो आपभी जल्दी चलो और उन महात्माओंको वन्दन करके अपनी आत्माको निर्मल करो । यह सुनकर आनन्दित हुआ हुआ 'ऋषभदत्त' अपनी प्रियाको साथ लेकर सिद्धपुत्र के साथ चल पड़ा । थोड़ीही देर में गणधर भगवान श्री ' सुधर्मा' स्वामीके चरणारविन्दोंसे पवित्र स्थानपर जापहुँचे । भगवान 'सुधर्मा' स्वामीको भक्तिपूर्वक द्वादशावर्त वन्दनसे नमस्कार करके योग्य स्थानपर बैठ गये और सुधाके समान श्री गणधर भगवानकी धर्मदेशना सुनी | धर्मदेशना होते समय कुछ अवसर पाके 'यशोमित्र' सिद्धपुत्र ने श्री ' सुधर्मा ' स्वामी से पूछा कि भगवन् ! जिसके नामसे यह जंबूद्वीप प्रसिद्ध है वह जंबू किस प्रकारकी है ? श्रुतकेवली भगवान 'सुधर्मा ' स्वामीने जातिमान रत्नमय उस जंबू वृक्षका स्वरूप प्रमाण और उसका प्रभाव कह सुनाया । तत्पश्चात् ' धारिणी' ने भी अवसर पाके गणधर भगवानसे यह प्रश्न किया कि हे भगवन्! मुझ