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परिच्छेद.] नूपुर पंडिता. वह मरके व्यन्तर जातिका देव हुआ। इधर वह राजपत्री और चोर दोनों आगे चल पड़े, मार्गमें जाते हुए उन्हें जलसे पूर्ण एक नदी आई, नदीमें पानीका पूर बड़े बेगसे जारहा था इस लिए वह चोर बोला-पिये! नदीका बेग बड़ा दुस्तर है और तेरे शरीरपर गहने बड़े भारी हैं इस लिए तुझे एक दफा उतारने में मैं असमर्थ हूँ, पहले तेरे गहने और वस्त्र नदीके परले किनारे रख आऊँ और दूसरी दफे आकर तुझे ले जाऊँगा । तू अपने सर्व वस्त्राभरण उतारके इस झाड़की ओटमें खड़ी होजा मैं अभी पीछे लौटकर आता हूँ और बड़ी कुशलतासे तुझे अपनी पीठपे चढ़ाकर ले जाऊँगा, तू निडर होकर निःसंदेह यहां खड़ी रहै देख में अभी आता हूँ । यों कहकर चोर उस पुंश्चलीके वस्त्राभरण ले और उसे अलफनंगी कर झाड़की ओटमें खड़ी करके नदीपार होगया। चोर नदीपार होकर विचारता है । जिसने मुझ अनजानपे रागिनी होकर अपने प्राणप्यारे पत्तिको मरवा डाला ऐसी कुलटा खीसे मेरा क्या हिल होसकता है । ऐसी स्त्रियोंका राग हलदीके रंगके समान होता है, जैसे हलदीका रंग जरासा ताप लगनेसे झट उड़ जाता है वैसेही कुलटा स्त्रियोंका राग भी क्षणभंगुर होता है। संसारमें ऐसी स्त्रियोंके वश होकर प्राणी अपने प्राणोंका घात करते हैं और भवान्तरमें नरकादि दुःखोंका अनुभव करते हैं, स्त्रीके लोलपी जीव उभय लोकसे भ्रष्ट होकर अपने आत्माको सदाके लिये अधोगतिका अतिथि बनाते हैं । अब मुझे वस्त्राभरण तो मिलही गये हैं मैं क्यों नाहक अपने आपको इस आपत्तिमें डालूँ। यह विचारके चोर पीछे देखता हुआ और हरिणके समान कूदता हुआ वहांसे अपने घरको भामा, चोरको जाता हुआ देखकर वह नग्निका हाथ उठाकर बोली-अरे मैंने तो तेरे ऊपर अनहद