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परिशिष्ट पर्व. _ [आठवाँ. आकाशमंडलमें आ पधारे राजाकी कचहरीमें दरबार लगने लगा। नौकर चाकर सब अपने अपने कामपर लग गये, परन्तु 'देवदत्त' पहरेदारकी नींद अभीतक नहीं उड़ी । उसे निश्चिन्त सोता देखकर लोग परस्पर विचारते हैं कि भाई! 'देवदत्त' कभी रात्रिके समय भी न सोता था और आज इतना दिन चढ़नेपर भी निःशंक होकर सोरहा है तो इसमें अवश्य कुछ न कुछ कारण होना चाहिये । एक नौकरने राजसभामें जाकर राजाको इतलाह दी की हजूर ! आपका नवीन पहरेदार आज निःशंक होकर सोरहा है अभीतक भी उसकी नींद नहीं उड़ी।
राजा कुछ विचारके बोला-भाई ! उसके सोनेमें अवश्य कुछ न कुछ कारण होना चाहिये वरना उसे कारण विना कभी नींद नहीं आवे, खैर उसे सोने दो जब वह अपने आप जागे तब उसे हमारे पास लाओ । 'राजा' की इस प्रकारकी आज्ञा पाकर नौकर पीछे लौट गया । 'देवदत्त' पहरेदार सात दिन, रात तक गाढ़ी निद्रामें पड़ा सोता रहा, आठवें दिन नींद उड़ जानेपर उसे राजसभामें लेजाया गया 'राजा' ने उसे पूछा-क्यों भाई! तुझे कभी भी निद्रा न आती थी और अब सात दिन तक नि:शंक होकर सोया इसका कारण क्या है ? । 'देवदत्त' को राजाकी तरफ देखकर कुछ कंपारीसी आने लगी । 'राजा' बोला'देवदत्त' तुझे मैं सर्व प्रकारसे अभयदान देता हूँ मगर इस बातका कारण अवश्य बताना पड़ेगा, राजाकी आज्ञा पाकर 'देवदत्त' ने निडर होकर रात्रिका सर्व वृत्तान्त राजाको कह सुनाया। राजाने बहुत कुछ धन देकर 'देवदत्त' को विदा किया । राजाके अन्तेउरमें बहुतसी रानियां थी उनमेंसे कौनसी कुलटा है यह पता लगानेके लिए राजाने एक काष्टका हाथी बनवाया और उस